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इतना सब घटित हुआ

itna sab ghatit hua

आसावरी काकडे

आसावरी काकडे

इतना सब घटित हुआ

आसावरी काकडे

और अधिकआसावरी काकडे

    नहीं जानती वह

    किसकी चोंच से गिरा था बीज

    उड़ते-उड़ते

    नहीं पूछा उसने नाम और पता

    समेट लिया सहजता से कोख में

    यहाँ-वहाँ से पानी आया

    धूप… हवा… और सबका गवाह आसमान भी

    लहलहाई बेल

    इमारत की आड़ में

    उगते रहे पौधे-झंखाड़ भी

    इर्द-गिर्द

    उससे लिपटकर

    वह नहीं जानता

    कौन-सी है यह शाख

    फूल-पत्तों के नाम से भी अज्ञात

    खुले में ही पनपी

    उन झाड़ियों में

    खोजी उसने ओट

    पत्तों के भीतर गहरे भीतर जाकर

    इत्मीनान से घिसता रहा वह

    नन्हे परों को नन्ही-सी चोंच से

    वहीं पर कुछ देर फुदक कर देखा

    और चहचहाते हुए उड़ गया…

    एक पंछी को

    पल भर की ओट चाहिए

    इसलिए घटित हुआ

    इतना सब कुछ?

    स्रोत :
    • पुस्तक : सदानीरा
    • संपादक : अविनाश मिश्र
    • रचनाकार : आसावरी काकडे
    • प्रकाशन : सदानीरा पत्रिका

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