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इतिहास कह रहा है

itihas kah raha hai

अनुवाद : हरिभजन सिंह

अजायब चित्रकार

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इतिहास कह रहा है

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    इतिहास कह रहा है :

    समय उसे बहा ले जाएगा

    जो बहते समय की

    गति से रहा अपरिचित

    एक युग आता है

    एक युग जाता है

    किंतु काल-रथ की गति

    रुकती नहीं कदापि

    पुराने पत्ते झड़ते हैं

    नए पत्तों की ऋतु आती है

    नव्यता की यह गाथा

    बहुत ही प्राचीन है

    मानवता के शत्रु

    मरते हैं अपनी मृत्यु स्वयं

    पर मानवता की रहती है

    युग-युग तक अमर कहानी

    लक्ष-लक्ष अक्षौहिणियों को मारने में समर्थ

    स्वयं मर-खप गए

    किंतु लोक-जीवन कभी

    असमर्थ नहीं होता है

    चंगेज़ और हलाकू—

    सरीखे सहस्रों जन्मे और

    मिट गए, पर मिटा सके

    लोक-जीवन को

    एटम के जनक यद्यपि

    भूले हैं, मत्त पापाचार में

    उनका अस्तित्व मिटा देंगे

    उनके ही दुष्कर्म

    आकर ही रहेगी मधुऋतु

    साम्यवाद की

    टिक सकेगी सदा के लिए

    संसार में कानी-वॉट

    लोक-लहर बढ़ती है

    रोके से कब रुकती है

    भला कभी कौन कब रोक सका

    बाढ़ का प्रवाह अदम्य

    धरती के पुत्रों को

    अधिकार करना है नक्षत्रों पर

    यह भविष्यवाणी

    मुझे सदैव सुनाई देती है

    श्रमिक ही इस जीवन का

    राजा बनकर रहेगा

    अंततोगत्वा, श्रम ही बनके रहेगा

    उसकी सुंदर रानी

    यह तत्त्व निकाला है मैंने

    युग-जीवन से

    ज्यों दूध से निकलता है

    मंथन के द्वारा नवनीत

    श्रम और श्रमिक को है

    शतश मेरा प्रणाम

    युग-युग के चारण

    गाएँगे इनकी गाथा।

    स्रोत :
    • पुस्तक : भारतीय कविता 1954-55 (पृष्ठ 433)
    • रचनाकार : अजायब चित्रकार
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी

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