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स्त्री

istri

आदित्य रहबर

और अधिकआदित्य रहबर

    स्त्री के अंदर अगर झाँक सको

    तो देखना

    वहाँ असंख्य कविताएँ

    आज भी दम तोड़ रही है

    चूल्हे की भट्टी

    परिवार की ज़िम्मेदारी

    बच्चों के प्रति ख़ुद का समर्पण

    इन सबों की जगह

    हो सकती थी कविता

    चूल्हे की भट्टी ने

    कितनी ही कविताएँ जलाकर राख कर दीं

    परिवार और बच्चों के प्रति ख़ुद का समर्पण

    उस जमा-पूँजी की तरह है

    जहाँ ब्याज की दरों के बदले

    कविताओं की अस्थियाँ प्रवाहित होती हैं

    जहाँ एक तरफ़ कवि

    कविता लिखने की जद्दोजहद में लगा है

    वहीं स्त्री ने कविताओं का त्याग कर

    कविता लिखने से बेहतर

    उसे जीना चुना

    ऐसा हम सोच सकते हैं

    कह नहीं सकते

    क्योंकि उसे समझना कठिन है

    त्याग करना उसके दैनिक जीवन का एक हिस्सा है

    जिसे कई बार उसे उसका शौक़ समझ लिया जाता है

    कई बार कविताएँ

    घर की दहलीज़ पार करना भी चाहती है

    किंतु रूढ़िवादी समाज और हमारी संस्कृति

    लट्ठ लिए दरवाज़े पर खड़ी होती है

    तब वे ख़ुद का मूल बचाने की ऊहापोह में

    ख़ुद को कहीं भूल बैठती हैं

    या यूँ कहूँ

    अस्तित्वविहीन हो जाती है

    और हम अपनी आँखों के सामने

    उनकी मृत्यु पर हास्य-विनोद कर

    अपनी ताक़त की नुमाइश करते हैं

    यह भूलकर कि उनके हत्यारे हम स्वयं हैं

    जो कविताएँ स्त्री-विमर्श पर लिखी जाती हैं

    दरअस्ल,

    वे कविताएँ नहीं

    दुख, वेदना और अवसाद की भट्ठी से

    तपकर निकला हुआ वह इस्पात है

    जिसे हम सब अपने-अपने तरीक़े से

    औज़ार बनाने में इस्तेमाल करते हैं।

    स्रोत :
    • रचनाकार : आदित्य रहबर
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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