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ईश्वर मेरा बिगड़ा यार

ishwar mera bigDa yar

संजय चतुर्वेदी

संजय चतुर्वेदी

ईश्वर मेरा बिगड़ा यार

संजय चतुर्वेदी

और अधिकसंजय चतुर्वेदी

    किसी मरदूद पे टमाटर फेंक के मारने से बेहतर है

    उसे टमाटर पे फेंक के मारना

    मेरी मृत्यु ने पंचांगों को भौचक्का कर दिया था

    जिस तरह मेरे जन्म ने

    ताकि रहे आदमी की पहल

    और सभी जीवधारियों की

    और उन सबकी जिनमें अभी जीवन खोजा जाना है

    और रहे ख़ूबसूरती इस मवाली की

    भन्नाया घूमता है भौंरे की तरह

    और जाने कहाँ है इसकी मंज़िल

    कभी अशिव में शिव

    कभी शिव में भटकता है अशिव बन के

    ज़मीन से फूटता है फ़सल की सूरत

    टूटता है विपत्ति बन के किसी दिन

    दिलों में मुहब्बत

    समाज में शोषण

    फ़ितरत में हरामपन

    कमज़ोरों में ताक़त

    और सिरफिरों में जीवट बन के उतरता है

    रूह में उतरता है शैतान की तरह

    हड्डियों में ख़ून, आँख में रौशनी, दिमाग़ में अँधेरा

    चीड़ में तारपीन का तेल

    और देवदारों के हरे में क़यामत का नूर बन के

    समुद्रों में सोम, सूर्य में रस

    भ्रूण में फ़ोन नंबर, पते में पिनकोड,

    ठोस चीज़ में ख़ला बन के

    ख़ला में बिजली, बिजली में चुंबक, चुंबक में लकीर

    लकीर से आती है चीख़

    अनंत सूक्ष्म और अनंत विस्तार की एकरूप

    धरती पर आया कोयले की चाशनी में प्राण बन के

    और जाने कितने लोकों में फूटा हो यह विलक्षण फव्वारा

    दिखता है तमाम गतियों में छंद की सूरत

    इस पद के साथ

    कि सूरत अगर पैदा हुई

    तो वह अपने आपमें एक तर्क है

    जो वहाँ भी रहता है जहाँ बुद्धि नहीं रहती

    जो तब भी था जब नहीं थी यह मग़रूर और फूली हुई चीज़

    काली रातों में रम्ज़-ओ-इशारा

    पर्वतों में सवेरा

    एक दिन अचानक उत्पन्न हुआ हो जैसे

    जैसे ली हो किसी ने साँस

    बिना पदार्थ और ऊर्जा के

    तमाम तर्कशास्त्र को ऊट-पटाँग करते हुए

    फोड़ा हो किसी ने नारियल पंडिज्जी की खोपड़ी पर

    और यह उलटबख़्त फैला विडंबना बन के रायते की तरह

    घर की नाली से आकाशगंगा तक।

    स्रोत :
    • रचनाकार : संजय चतुर्वेदी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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