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ईश्वर : शबनम :: शराब

ishwar ha shabnam hah sharab

मनोहर ओक

मनोहर ओक

ईश्वर : शबनम :: शराब

मनोहर ओक

और अधिकमनोहर ओक

    शराब

    शबनम

    तेरे दर्भ का स्पर्श होने दे उस पवित्र जल से

    कनिष्ठिका, अनामिका भीगे भी तो हर्ज नहीं

    हो गया

    छिड़क दे वह जल चारों ओर

    पढ़ दे मंत्र

    “सभी आँखें शालीन हो जाएँ

    सभी हाथ उचित

    सभी जेबों में पूनम

    सभी सीने दिलदारू

    छिड़क दे वह पवित्र जल

    उदास, भकास, निराश, ढँके हुए, जले हुए, मुरझाए हुए,

    पसीने-पसीने हुए

    ये फूलों के नाम हैं

    देख

    शबनम के साथ हँसते-खिलखिलाते उनके चेहरे फेनिल उभरे हुए

    पाँवों के डंठल पर हिल रहे हैं उनकी गर्दन डोल रही है

    एक तार पर सभी लटकते हुए कद्दू

    यह प्याला

    इसकी ऊँचाई कितनी

    गौर से देखो

    कई तैरते पैर

    इस प्याले की तह को स्पर्श नहीं किया एक पैर ने भी

    पेट के भभकते हुए गुलमुहर

    ज़बान मुहरबंद करो

    उठाओ पैरों भीतर के परबत

    देखो कैसी बेज़ुबाँ पतंग गिरती जाएगी तुम्हारी

    दो पैर ही काटाकाटी खेलेंगे उतना सम्हालो

    कहो

    ईश्वर, शराब, शबनम

    आओ यक्षकिन्नरों हमालों

    विद्याधर गंधर्वो, फेरीवालों

    चारण अप्सराओं, मजदूरों

    बेतालों, बेपारियों

    शैतानों, भद्र गृहस्थों

    राक्षसों, पुरखों

    सिद्ध सम्पन्नों, कंगालों

    कली, तू भी

    बच्चे, तू भी आ।

    यह द्रव नहीं है

    यह है करिश्मा

    इस प्याले में देखो तेज़ी से बदलते चेहरे

    जो थे अब नहीं हैं,

    कितनी मुलायम पर्त इस पवित्र जल की

    घटना : वाल-पेपर्स पर लिखे सपने : चिपकी हुई हिस्ट्री

    उसे तैरते पिघलते हुए बर्फ़ के टुकड़े में देखो रूप, तुम्हारी जवानी

    उतनी ही सच, सलोनी

    हे कला-पारंगतो

    तुम्हारी कला का भाग्योदयी चंद्र यह देखो उग आया प्याले में

    देख लिया उसकी कला बढ़ती जा रही है

    उँगलियों से पकड़ मत निकालो बाहर

    वह भीगेगी नहीं

    समझो कि वह काग़ज़ का पुर्ज़ा है फिर भी

    तुम्हारी आँखों में लालच दिखाई दे रहा है

    ठीक नहीं है

    यह पवित्र जल पीओ निखालिस सूखा

    आँखे भर आएँगी

    गले भर कर

    ऐसा मत करो

    थर्मामीटर के पारे जैसा पीओ

    म्यान की तलवार म्यान में रहने दो

    थोड़ा ठंडा सोड़ा

    देख लो प्याले के भीतर का नभोमंडल

    जालीदार कमीज़ पहनता है प्याला

    कितनी क्लीन निर्मल बंदिश

    यह प्याली नहीं है

    यह एक मोर

    यह उछलता चलता-बोलता फव्वारा

    यह द्रव नहीं है

    यह है सुराही

    ‘सुराही पीओ सुराही’

    घुमावदार प्रीतम पवित्र जल

    साँप जैसे लहराते चलो सिर का अंगारा हवा को देकर

    कहो

    ‘हे पवित्र गँदले जल, तू हमारा उद्धार कर

    हे कूड़े-सी पवित्र शबनम

    तू हमें मुरझाने मत दे

    हे टिन्पाट ईश्वर, तू मेरी ठोकर के सामने मत आ’

    स्रोत :
    • पुस्तक : साठोत्तर मराठी कविताएँ (पृष्ठ 40)
    • संपादक : चंद्रकांत पाटील
    • रचनाकार : मनोहर ओक
    • प्रकाशन : साहित्य भंडार
    • संस्करण : 2014

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