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ईश्वर भी होगा कहीं

ishwar bhi hoga kahin

मधु शर्मा

मधु शर्मा

ईश्वर भी होगा कहीं

मधु शर्मा

और अधिकमधु शर्मा

    एक स्तंभ उठाए दो हाथ

    गड़ा रहा होगा शर्म से धरती में

    औंधे आसमान के बोझ तले सिर झुकाए

    जब सोने चले जाते होंगे नक्षत्र सारे

    रात उतरती होगी चुपचाप

    अकेले किसी अनजान ठीहे पर खोया स्वप्न तलाशने

    बहुत पहले सरे-साँझ

    किसी साइस का प्रेम रुका होगा यहीं

    अकेली उदास रात ने ली होगी करवट

    इसी ठौर चटक कर टूटी होगी अँगड़ाई

    किसी भूली भटियारी की उन्मत्त अलसाई देह में

    युगों तक बिखरा रहा होगा लश्कारा उसके यौवन का

    कोई बात ठिठक कर रुकी होगी आतुर अधरों के संशय में

    खिंची होगी लगाम हाथों में हैरान हुई कसकर

    घोड़ा स्तब्ध कि जाएँ कहाँ?

    हर रास्ता जाता सपनों के झिलमिल छोर तक

    औचक उघड़ी नींद में बेसुध पल्लू

    अटका रह गया होगा किसी बंजर बियाबान में

    डर तक जाते ख़ौफ़ लौट आते होंगे

    चुभती रात की फैल रही स्याही में

    दूर तक जाते वे कालिख सने पाँव

    और टँगी रही होगी उस रात एक उदासी

    स्तम्भ के शीर्ष पर

    एक थाल भर सवेरा मुस्कुराता रहा होगा साँझ तक

    आसमान कहीं नहीं था इस पूरे दृश्य में

    जिससे उतरतीं रूहें प्रेम करती हुई

    पेड़ों में किस क़दर मचा हाहाकार उन्हें लेने को

    वे पुकारते रहे आसमानों तक बाँहें उठाए

    झड़ चुके थे उनके वस्त्र पिछले पतझड़ में

    एक मुद्दत से लौटा नहीं था वसंत

    थिर पड़ी भुजाओं में ख़ाली था देश और काल

    समय और स्थान को यकसार करते पदचिह्न

    मिल चुके थे धूल में

    इतिहास खोजेगा उन्हें अतीत के सफ़े उलट

    पेड़ अलफ़ नंगे कोसते उजाले को हो गए ख़ामोश

    यह साइकिल खड़ी रात की पूरे दृश्य में दम साधे

    कोई भूला कब लौटेगा याद दूर के जनवासे से

    धुँधले हुए जा रहे दृश्य अब दूर तक

    संवाद सब कहे जा चुके

    खेली जा चुकीं घटनाएँ सब मंच पर रात के

    वे धो रहे चेहरे, बदलते विन्यास

    एक समाप्त हुए नाटक के पात्र खड़े हैं पीठ पीछे

    पूर्ववत चेहरों के साथ उन्हें विदा लेनी है कथानक से

    अकेलेपन की इस चौखट में जड़ा है आसमान

    ईश्वर भी होगा कहीं अब ख़ाली

    अपने कारोबार की गाँठ बाँधे

    हरे-नीले की छायाएँ हैं श्याम धूसर

    और आँखों की पुतलियों से दो ठहरे चक्र

    घूरते रहेंगे कब तक राह उचाट की सन्नाटे पर।

    स्रोत :
    • पुस्तक : कविता सदी (पृष्ठ 618)
    • संपादक : सुरेश सलिल
    • रचनाकार : मधु शर्मा
    • प्रकाशन : राजपाल एंड संस
    • संस्करण : 2018

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