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इस ख़तरनाक दौर में

is khatarnak daur mein

कुमार कृष्ण शर्मा

कुमार कृष्ण शर्मा

इस ख़तरनाक दौर में

कुमार कृष्ण शर्मा

और अधिककुमार कृष्ण शर्मा

    मुन्नी बदनाम हुई, डार्लिंग तेरे लिए

    मैं झंडू बाम हुई, डार्लिंग तेरे लिए

    मुझे पता है

    आप सोच रहे हैं

    यह कैसी कविता...

    यह तो गाना है

    इसे छोड़ो

    दूसरी कविता सुनाता हूँ

    माय नेम इज़ शीला, शीला की जवानी

    आय ऍम सो सेक्सी बट तेरे हाथ आनी

    आप फिर सोच रहे है

    मैं गाने क्यों सुना रहा हूँ

    अपनी कविता क्यों नहीं सुना रहा

    मैं आप से ही पूछता हूँ

    अभिव्यक्ति के दमन के

    इस ख़तरनाक दौर में

    मैं आप को और क्या सुना सकता हूँ

    मैं यह पूछ लूँ कि धरती के स्वर्ग पर

    तीन महीनो में

    सौ से ज़्यादा जवान क्यों मार दिए गए?

    वे लोग जिन्होंने

    अँग्रेज़ों के साथ मिल कर

    हमारी पीठ पर कोड़े बरसाए

    वे देश-प्रेम को परिभाषित क्यों कर रहे हैं?

    मैं दलितों, पिछड़ों के समर्थन में

    कुछ शब्द बोल दूँ

    तो इस बात की गारंटी

    कौन देगा कि मुझको भी

    अपनी जवानी सलाख़ों के पीछे गुज़ारनी पड़े

    मुझ को देशद्रोही क़रार दे जेल में डाल दिया जाए

    अभिव्यक्ति के दमन के इस ख़तरनाक दौर में

    जब विश्व भर की सत्ताएँ

    हर खुलने वाले मुँह में

    पिघला हुआ सीसा उड़ेलने को तैयार बैठी हैं

    ऐसे में मैं आपको

    और क्या सुना सकता हूँ

    यह वह दौर है

    जब हमारा खाना, पीना

    चलना, उठना, बैठना, पहनना सब ख़तरे में है

    अगर मेरी जवान बेटी

    जींस पहन ले

    या अपने किसी दोस्त के साथ

    बाज़ार कॉफ़ी पीने चली जाए

    तो इस बात की कौन गारंटी देगा कि

    किसी जमात या सेना का कार्यकर्ता

    उस पर लात-घूँसे झड़ दे

    यह वह दौर है

    जब आप अपने बेडरूम में लेटे

    पूरे परिवार के साथ

    बिकनी पहनी अभिनेत्री को

    चार मुशटंडों के साथ

    अपनी मांसल जवानी बेचते

    या बदनाम होते देखें

    और कुछ नहीं बोलें

    हालाँकि इसी दौर में

    आपके पास विकल्प और भी हैं

    यह फ़ैसला आपको ही करना है

    आपको क्या चाहिए

    बदनाम मुन्नी

    शीला की जवानी

    या मेरी कविता?

    स्रोत :
    • रचनाकार : कुमार कृष्ण शर्मा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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