इस जगह का नाम
is jagah ka nam
आँखों से कुरेदता मैं इसकी प्रस्तर जड़ता को
इस अंतरीप की शिराओं में स्मृतिशेष हैं अनेक
जिन पर हवा-पानी ने लिखा एक अंतराल जो
बीतते हुए इस भविष्य से भी अर्वाचीन अतीत
और हर पत्थर पर पैर रखते ही जैसे मैं भी हुआ
पर फिर भी घटा नहीं अभी!
यहीं पर रुक कर किसी ने देखा होगा अभी नदी को
मेरी तरह पल भर विहंगम अस्ताचल में आँखें बंद रखते एक साँस,
जो झुकती है अपने वलयों की ओर अपने ही प्रतिबिंब में
उनींदे बादलों की नीली छाया में
पास आती वे दूरियाँ जो कभी नज़दीक नहीं हो पातीं,
सुनते झींगुरों के अनुनाद को संवेग स्थिर नहीं रह पाते
इतनी भर ख़ुशी कि भारी हो जाती हवा मेरे सीने में
मैं जी रहा हूँ ख़ुद को भूलकर उसकी कल्पना इस पल,
मिल जाए अनंतता खड़े रहने भर की ज़मीन बराबर
किसी घर की चौखट होगी यह
गली का मोड़ जहाँ अब एक चीड़ झुका ऊँघता दुपहर की धूप में
यहीं कहीं था न तुम्हारा घर टूटी दीवाल छोर
लौहयुगीन पूर्वज से पूछा
क्या तुम्हें याद है इस जगह का नाम
देखो ये चक्कीपाट अब पत्थर ही रह गए
अपना कारण बता
छूटे वे रह गए यहीं विगत
सुनते तुम्हारे अकेलेपन को
अपने कानों में
वही अंतिम आखर, जो छूट जाता हमेशा मन से
ढालू टीले पर मैं उसे छू ठेल देता हूँ
उम्मीद के साथ दिशाओं को छूने चली हवा में
आत्मलीन अपनों के बीच अपना रास्ता खोजने
मुझे भरोसा है धूप के अँधेरे पर बिना पलकों को खोले
जिसमें खुली रख सकता हूँ आँखें
कभी लिखूँगा पहला शब्द उसी आखर से
जो समस्त को टेक देता वाग्बीज
रह जाता है हमेशा अंत के बाद।
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उत्तरी पुर्तगाल में एक पहाड़ी पर लौहयुगीन पुरातत्व-स्थल 'सितनिया द ब्रितैरुश' है और विहंगम घाटी में आभ नदी बहती है।
- रचनाकार : मोहन राणा
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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