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इल्मों बस करीं ओ यार

ilmon bus karin o yar

सौम्य मालवीय

सौम्य मालवीय

इल्मों बस करीं ओ यार

सौम्य मालवीय

और अधिकसौम्य मालवीय

    तसव्वुर और तख़य्युल के बीच

    झूलते दिल पर झुँझलाते हुए हम कहते थे कि

    इसका कोई तो मक़ाम तय होना चाहिए

    शायद हम ये समझते ही नहीं थे कि

    ये तो हमारी नज़र का फ़र्क़ है

    वर्ना दिल का मक़ाम तो दोनों की

    जुगलबंदी में पहले ही तय है

    हम इस बात पर अपनी नींदें खोते थे

    कि हम दूसरे को बेहतर जानते हैं

    की दूसरा हमें बेहतर समझता है

    शायद हम ये देखते ही नहीं थे कि

    समझ तो नासमझी के ताल में उठी

    किसी लहर की तरह है

    जहाँ हम-तुम उस लहर के

    अलग-अलग रुख़ हैं

    और नासमझी का ताल कामू का अब्सर्ड नहीं

    एलिस की हैरतअंगेज़ दुनिया है!

    हमें लगता था कि,

    हम बड़े बा-हस्ती, बा-वजूद हैं

    पर कोई वाक़या कभी हमें

    रेत पर लिखे हर्फ़ की तरह पोंछ जाता था

    तो बड़ी कोफ़्त होती थी,

    हमें लगा शायद मनोविश्लेषण

    हमारी मदद करे

    पर मनोविज्ञान तो उनके लिए है

    जो अपने विकारों की कीमत अदा कर सकते हैं

    और हमें कभी नहीं लगा कि हम

    भुना भी सकते हैं ग़मे-हस्ती को!

    ग्रंथियों की तिज़ारत भी कर सकते हैं!!

    सूरते हाल ये कि ,

    दार्शनिक पैदा हुए थे हम

    और दुनिया की व्याख्याओं से आजिज़ आकर

    दुनिया बदलने पर आमादा थे

    जबकि सवाल उसे रेशा-रेशा अनुभव करने का था

    सो हम अदार्शनिक होते गए

    ज़िन्दगी के हामी बनते गए,

    जो जीवित है

    वो अपने ज़िंदापन में ज़िंदा रहे

    इस बात के हक़परस्त होते गए

    हमें लगा,

    त्योहार कम हैं और होने चाहिए!

    हमें लगा,

    इतवार कम हैं और होने चाहिये!

    हमें लगा,

    अख़बार ज़्यादा हैं

    कम होने चाहिए!

    हमें लगा विचार ज़्यादा हैं

    कम होने चाहिए!

    बड़े विचारक जन्मे थे हम

    और धीमे-धीमे जलतरंग होते गए

    अब ज़िंदगी की तमाम नफ़ो-नफ़ासत,

    अम्लो-तौर, रंग-ओ-शाइरी में मुब्तिला

    हम सारे ज्ञान को, सारे इल्म को

    याद बना देना चाहते हैं।

    स्रोत :
    • रचनाकार : सौम्य मालवीय
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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