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हम सबकी चर्चा है यह

hum sabki charcha hai ye

मंजुला बिष्ट

मंजुला बिष्ट

हम सबकी चर्चा है यह

मंजुला बिष्ट

और अधिकमंजुला बिष्ट

    यहाँ मतभेदों हेतु कूट शाब्दिक हमले हैं

    मनभेदों के लिए स्वरचित निर्लज्ज नारे हैं

    सच की लज्जाशील विडंबनाएँ हैं

    छल-झूठ की आदिम दुरभिसंधियाँ हैं

    एकल वर्चस्व हेतु दंभी प्रवंचनाएँ हैं

    भावात्मक शोषण के सघन घोषणा-पत्र हैं

    सुनियोजित सामूहिक बायकाट हैं

    स्वार्थसिद्धि हेतु फ़ौरी विनीत वचन हैं

    महीन लिजलिजे अनैतिक संकेत हैं

    अलोकतांत्रिक एकतरफ़ा निष्कर्ष हैं

    गुरिल्ला-युद्ध के विश्वस्त वंशज हैं

    अपने वंश की सत्कीर्ति हेतु गहन प्रार्थनाएँ हैं

    लेकिन पराई संततियों हेतु कुंठित भविष्यफल घोषित हैं

    सबसे हास्यास्पद निर्मम ख़बर यह है कि

    सभा के मध्य में बैठे-बैठे

    ये निरकुंश हत्यारे निर्णय सुनाते हैं

    और आरामतलब प्रजा में तब्दील सभासद

    अपने-अपने हिस्से की लाभ-योजनाएँ समेट

    फ़ौरी मुसीबत को टाल अपने गंतव्यों को निकल लेते हैं

    आप सोच रहे होंगे कि

    ये देश की किसी राजनैतिक पार्टी के सामान्य लक्षण हैं...

    नहीं, माननीय!

    मैं तो एक सामान्य परिवार की बात कर रही हूँ

    किसी भी सम्मानित-शिक्षित मनुष्य के परिवार की!

    मेरे जैसे ही किसी जीवित बचे मनुष्य की

    तुम्हारी तरह बंधु-बांधवियों की

    आप जैसे किसी पड़ोसी की

    उसके जैसे किसी नाते-रिश्तेदार की

    क्या अब भी आपको लगता है कि देश में बढ़ती

    असहिष्णुता, असंवेदनशीलता और स्वार्थपरता पर

    खुलकर चर्चा करने की उपयुक्त जगह

    संसद, शैक्षिक-संस्थान, चौराहे, खेल के मैदान...

    या कोई भी सार्वजनिक स्थान होने चाहिए?

    इसे दुबारा-तिबारा पढ़ लें, माननीय!

    हम सबकी खुल्ली चर्चा है यह!

    स्रोत :
    • रचनाकार : मंजुला बिष्ट
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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