कल्पना जे खाली कल्पने नहि होइत छैक
kalpana je khali kalpne nahi hoit chhaik
अरुणाभ सौरभ
Arunabh Saurabh

कल्पना जे खाली कल्पने नहि होइत छैक
kalpana je khali kalpne nahi hoit chhaik
Arunabh Saurabh
अरुणाभ सौरभ
और अधिकअरुणाभ सौरभ
चिहुँक उठतियैक चिड़ै-चुनमुनी
गम-गम सिनुरिया बसातमे
अहाँक नहु-नहु पड़ैत डेगमे
बिछियाक घसर-घसर
अँचरीक खसर-फसर
अहाँ ढुकितहु नहाकेँ
भीजल केसक संगहि
खोलितहुँ केबाड़
केसमे करितहुँ ककबा
ओहि केसक पानि पड़ितै
हमर ठोरपर
हम अकचकाकऽ उठि जेतहुँ निन्नसँ
अहाँकेँ कसिकेँ बान्हि लेतहुँ
अपन मजगूत बाँहिक आलिंगनमे
बिसरि जेतौं
अपन सभटा कष्ट
दुनियासँ भेटल अपमान
अवसाद आ त्रासदीयुक्त स्वप्न
जे काँचों निन्नकेँ तोड़ि दैत छैक
बिसरि जेतौं हम-अहाँ
रातिक गहनतम अन्हार
मोन रहितै खाली बेसुमार प्रेम
हमर अहाँक भीजल ठोरक स्पर्शमे
होयतै कोनो भोरक शीतल प्रारंभ
- पुस्तक : एतबे टा नहि (पृष्ठ 72)
- रचनाकार : अरुणाभ सौरभ
- प्रकाशन : नवारम्भ
- संस्करण : 2017
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