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होटल पैराडाइज़

hotel pairaDaiz

देवी प्रसाद मिश्र

देवी प्रसाद मिश्र

होटल पैराडाइज़

देवी प्रसाद मिश्र

और अधिकदेवी प्रसाद मिश्र

    जिस होटल में मैं रुका हूँ वह गुलाबी नियान लाइट में पैराडाइज़ है मेज़

    चिपचिपी है गिलासों और कप और दीवारों पर ग्रीज़ है बिस्तर का चादर ऐसा है

    कि जैसे कीर्तन में बिछाने के बाद झटक कर यहाँ बिछा दिया गया हो ओढ़ने

    वाला चादर ज़्यादा संदेहास्पद है—जंगल काटने वाले किसी मामूली स्मगलर का

    सेक्सवर्कर के साथ अभिसार का बिछावन। तकिया किसी मेडिकल रिप्रज़ंटेटिव

    की दवाओं का थैला लग रहा है

    होटल मालिक का तीसरा बेटा सीने की ज़ंजीर गले में डालकर घूमता है—स्टेशन

    के पास माइनिंग के पैसे से होटल होने का जो भरोसा उसके पास है उसकी तुलना मेरे हिंदी में लिखने के गिरते आत्मविश्वास से नहीं की जा सकती

    वह मेरे कुर्ते, मोबाइल और होने को हिक़ारत से देखता है और पूछता रहता है

    कि सब ठीक तो है सर मैं कहता हूँ कि सब ठीक होता तो तुम यह होटल

    बनवा पाते उसने हँसते हुए कहा कि होटल के परिसर में उसने मंदिर बनवा

    रखा है माँ का आदेश हुआ कृष्ण उसका सखा है बोलो राधे राधे

    मैं बिस्तर से उठता हूँ—हड्डियों की चट-चट की आवाज़ें आती हैं मैं अपने

    पास कम साल होने की घबराहट से नहीं से अत्याचार की परंपराओं से विचलित हूँ

    होटल का सबसे दुबला कर्मचारी आकर पूछता है कि टी.वी. चला दूँ तो जैसे याद

    करके औचक कहता हूँ कि पंखा चला दो उसने कहा वह ख़राब है उसने जाते

    हुए कहा कि कुछ और चाहिए क्या तो मैंने कहा कि सरसों का तेल जिसे वह

    वाक़ई दे गया बहुत धीमे से यह बताते हुए कि वह इस बोतल को अपने कमरे

    से लाया है जो होटल की छत पर है ठीक वहाँ जहाँ पैराडाइज़ लिखा है उसके पीछे

    वह पूछता है कि आप क्या काम करते हैं तो मैं कहता हूँ कि कविताएँ लिखता

    हूँ वह कहता है कि क्या आप इस बात को अपनी कविता में लिख सकते हैं

    कि होटल के मालिक का दूसरा बेटा हर तीसरे दिन गुलाबी नियान लाइट में

    नहाए पैराडाइज़ की बरसाती में बारह के बाद आता है, मुझे नंगा करता है और

    पेट के बल लिटाता है मैंने कहा कि हिंदी में शील और अश्लील को लेकर बहुत

    पाखंड है इसीलिए सच कहने के तरीके़ भी सीमित हैं—काफ़ी हद तक अप्रमाणिक

    वह मुझे देखता रहा फिर वह चाय नाश्ते के बर्तन हटाता रहा। इस दौरान कभी

    टी.वी. का रिमोट दब गया—टी.वी. चल गया और लोकतंत्र के फ़साद का बहुत

    सारा धुआँ कमरे में भर गया—बहुत सारे फ़ासिस्ट कमरे में टहलने लगे जिसमें

    होटल के मालिक का तीसरा बेटा भी था जो यह कहते हुए कमरे में घुस आया

    कि सर सब ठीक तो है?

    स्रोत :
    • रचनाकार : देवी प्रसाद मिश्र
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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