ख़ाली होते हैं घर, लदता है सामान
hisTiiriya aur helth pepars
चिमटे से पकड़कर सूरज को उठाते हुए
याद आती हैं हिदायतें
सपनों का फ़र्ज़ है कि उनके अंत में गुफा हो
और उसमें मृत्यु,
मृत्यु महानता की तरह आए
पुजारी करे ईश्वर की तरह माथे पर तिलक
हिजड़े बदतमीज़ और सपेरे डरावने हों
आप मुट्ठी बंद करें और उल्टे लौटें
दबे पाँव खुले-खुले
ख़ुश रहो राजा बेटा!
तंग होते हुए ब्रश करना बाल बनाना
दुखी होते हुए होना ज्ञानवान
पैदा होते हुए पिता
हथेलियों में सहेजकर रखना पुराना पसीना
स्विच दबाना और मरने की एक्टिंग करना
भूल जाना कि किसे-किसे रखना था याद
किससे करनी थी नफ़रत
किसे माफ़ और किसे प्यार करना था
नुक्कड़ों से डरकर बाज़ारों में छिपते हुए
मैं चला जाता हूँ कि शाम आती ही है और आएगी
आप उबलते हुए दूध से नहीं धो सकते चेहरा चाहे कितना भी महँगा हो
लिखना कोई एक अक्षर और पूछना सौ हिज्जे, तीस कहानियाँ
स्कूल के जूते बेचकर चाक़ू ख़रीदते हुए मुझे लगा
कि हमारे यहाँ भी होना था जीवन
यह सबसे आख़िर में याद आया कि
किसी और के आने में आपको जाना होता है
ख़ाली होते हैं घर, लदता है समान।
- पुस्तक : सौ साल फ़िदा (पृष्ठ 11)
- रचनाकार : गौरव सोलंकी
- प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ
- संस्करण : 2012
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