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हिंसा के विरुद्ध

hinsa ke viruddh

केतन यादव

केतन यादव

हिंसा के विरुद्ध

केतन यादव

और अधिककेतन यादव

    जितनी बड़ी महत्वाकांक्षा रही उतनी बड़ी हिंसा

    इसके आंकलन के लिए हर बार

    एक नई मरीना अब्रामोविक को

    देनी होगी रिदम जीरो की परफ़ॉर्मेंस

    हर संगीन अपराध के बाद स्तब्ध

    सोचता हूँ मैं कि ठीक इसी कृत्य को

    इससे और कितनी अधिक जघंयता से

    कैसे अंजाम दिया जा सकता

    कितने और नए तरीक़े हो सकते हैं

    इस अपराध के लिए

    अधुनातन

    पहले से अधिक बेखौंफ़

    अपराधी वही है आदिम सनातन

    बस उसके हथियार

    समय के साथ और नुकिले पैने होते गए

    और मनुष्यता पर आए संकट भी

    [दृश्य—एक

    अतीत का प्रतिशोध वर्तमान से लिया जा रहा

    वर्तमान प्रायश्चित कर रहा अतीत का

    भविष्य युद्धरत दिख रहा

    इस तरह सभी काल एवं घटनाएँ

    असंपृक्त एवं अंयोन्याश्रित पाई जा रहीं]

    सड़क पर निकलती है लहराते हाथ होली की यात्रा

    और घर के अंदर तहख़ाने तक की दीवार रंग जाती है

    चैन-ओ-अमन की दुआ पढ़कर लौटते नमाज़ी

    अचानक एक साथ कंकड़ ढेले में बदल जाते हैं

    सब्ज़ी ख़रीदने, ऑफ़िस जाने, मंदिर जाने,

    खँसी ले आने वाले लोग

    सड़क पर शांति से चलते-चलते यकायक

    मॉब में बदल जाते हैं

    ये ठीक वही लोग हैं जिन्हें मैं बचपन से

    पहचानता हूँ‌ देखता आया हूँ

    मुहल्ले के चाचा, दादा, भइया, दोस्त कहता हूँ‌ जिन्हें

    सब के सब अचानक बदलते जा रहे हैं

    और सबके चेहरे एक ही रंग में रंग चुके।

    दोनों एक ही दुकान का माँस खा रहे,

    दोनों के दोनों एक ही गाली बक रहे हैं,

    दोनों की ऩज़र देह के एक ही हिस्से पर है

    और दोनों ही अपने-अपने तरीक़े से

    उस हिंसा को अपना धार्मिक कर्तव्य बता रहे

    फिर मैं कैसे कह दूँ ये हिंदू है और ये मुसलमान

    और दोनों के जुर्म की तासीर अलग-अलग है?

    [दृश्य—दो

    पुलिस स्टेशन के कुछ दूर पहले ही

    वीर्य बिखरा पड़ा मिला है

    उसके ठीक थोड़ा आगे रक्त के पोछे गए धब्बे

    और पुलिस स्टेशन के ठीक बाहर

    केरोसिन की एक धारा बहती दिखाई दे रही]

    उनकी तृप्ति

    क्रूरतम हिंसा के दम पर अर्जित है

    कथित अहिंसक शांति में

    मातम का पूर्वराग पसरा हुआ है

    जो कभी भी तब्दील हो सकता है

    असहाय चीख़ों में

    जिनका विधाता किसी धर्म का नहीं होता

    (हिंसा हो रही है हाथों से स्पर्श से

    देखकर, सूँघकर, बककर, लिखकर,

    टाइप करके और कुछ करके भी हो रही है

    कमेंट बॉक्स में एक साथ भीड़भर ट्रोलिंग में

    किसी को ट्रोल करके आत्महत्या तक

    पहुँचाया जा सकता है आज

    और ट्रोलिंग कोई जुर्म नहीं है

    इस कोष्ठक के भीतर आप अपने साथ हुई कोई अन्य मौलिक

    हिंसा भी दर्ज़ करने के लिए स्वतंत्र हैं)

    आत्मरक्षा के निमित्त हथियार

    हमें दाल में नमक बराबर चाहिए थे

    विषरोधी बनाने के लिए

    हम कब ज़हर को बेअसर कर गये

    विषाक्त भी स्तब्ध हैं

    हमारी भाषा में हिंसा उतनी शामिल हो चुकी है

    जितनी आतंकवादी की भाषा में घृणा

    अल्पसंख्यक की बोली में असुरक्षा

    हमारी दिनचर्या में हिंसा वैसे ही शामिल है

    जैसे किसी यार को दे रहे हों हर दूसरे वाक्य में गाली।

    देश के नौजवानों को समझना होगा

    कि मक्खी मारना भी एक राष्ट्रीय सामयिक हिंसा है

    राह चलते उस अनमने व्यक्ति के पीछे

    लगातार हॉर्न बजाना

    उसे कुचलने की सांकेतिक धमकी

    और चलती कॉल के दौरान बात सुनते-सुनते

    अचानक फ़ोन काटना भी तो हिंसा ही थी

    हाँ उसी कॉल को

    जिसे नाराज़गी का नाम दिया जा सकेगा मज़बूरी का।

    [दृश्य—तीन

    सबूतों से लदी चारपहिया गाड़ी

    टेढ़े़-मेढ़े रास्तों के नीचे खाई में

    पलटी हुई गिरी दिख रही

    नहीं दिख रहा है कोई एनकाउंटर

    दलीलों में एक राहत दिख रही है]

    “बुल्डोजर से अपना घर टूटते गौर से देख रही है

    एक सब्जीवाली बुढ़िया

    एक युद्ध में अपने बाप के हत्यारे के पैरों से

    आकर लिपट गया एक मासूम बच्चा

    एक अविवाहित प्रेमिका ने अपने मंगेतर के ख़ूनी के सामने

    अपने प्रेमी को बार-बार चूमा

    युद्ध में अपने बच्चे को खोई हुई एक माँ

    युद्धस्थल में निडर बिखरे खिलौने बीन रही थी

    एक कवि मृत्युदंड की सज़ा के पहले तक

    लिखकर पूरी कर रहा था एक प्रेम कविता।”

    स्रोत :
    • रचनाकार : केतन यादव
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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