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हिन्दी ओ मैथिली

hindi o maithili

हरिमोहन झा

अन्य

अन्य

हरिमोहन झा

हिन्दी ओ मैथिली

हरिमोहन झा

और अधिकहरिमोहन झा

    (1)

    हिन्दी जहाँ हिन्दमहासागर विशाल थिकी,

    मैथिलीकेँ मन्दाकिनी तुल्य मानैत जाउ।

    हिन्दी हिमालय केर उच्च कैलास शृंग,

    मैथिलीकेँ मानस सरोवर जनैत जाउ।

    हिन्दी जौं हृदय हार राष्ट्रक शृंगार थिकी,

    मैथिलीकेँ माला बूझि उरमे अनैत जाउ।

    हिन्दी जहाँ हस्तिनी समान हृष्ट-पुष्ट थिकी,

    मैथिलीकेँ कोमल मृगनैनी गनैत जाउ।

    (2)

    हिन्दी जहाँ ह्वेल जकाँ पीवर विशाल थिकी,

    मैथिलीकेँ माङुर माछ कोमल जनैत जाउ।

    हिन्दी जहाँ हिना जकाँ उत्कट सुगंधवाली,

    मैथिलीकेँ मोतियाक कोटिमे गनैत जाउ।

    हिन्दी जहाँ हींगक कचौरी छथि पुष्ट दल,

    मैदा मध्य मैथिलीक मोएन सनैत जाउ

    हिन्दी जौं हलुआ थिकी, भरि पेट खैबा हेतु,

    मैथिलीकेँ मोहनभोग बूझि कऽ चखैत जाउ।

    (3)

    हिन्दी हँसैत छथि शृंगारहार फूल जकाँ,

    मैथिली मौलश्री जकाँ मुसुकी छोड़ैत छथि।

    हिन्दी हिड़ोला पर बैसि छथि झुलैत जहाँ

    मैथिली मधुर-मधुर मचकी तहाँ दैत छथि।

    हिन्दी हिंडोल राग सुनबै छथि तार स्वर,

    मंद्र मालकोश तहाँ मैथिली गबैत छथि।

    हिन्दी हरमुनिया अलापि रहल ताहि मध्य,

    मैथिली सुमंजु मंजीर बजबैत छथि।

    (4)

    हिन्दी हँकै छथि जहाँ हवागाड़ी बेतहास

    मैथिली महारानी महफामे चलैत छथि।

    हिन्दीक हाथें होइछ हलुआ-पूरीक भोज,

    मैथिली मधुर मखान विखजी बँटैत छथि।

    हिन्दी जहाँ हंस जकाँ चलथि गंभीर चालि,

    मैथिलीओ मैना जकाँ चहचह करैत छथि।

    हीराक हार जकाँ हिन्दी छथि चमकैत,

    मोतीक माला जकाँ मैथिली लगैत छथि।

    (5)

    हिन्दी केर बिन्दी यदि पूर्णचन्द्र मानल जाय,

    मैथिलीक भालो चौठिचन्द्र शोभमान छथि।

    हिन्दी यदि हथिया नक्षत्र जकाँ बरसै छथि,

    स्वाती जकाँ मैथिली करैत बिंदुदान छथि।

    हिन्दी यदि भादवक भरपूर भागीरथी,

    मैथिली हेमन्त केर कमला बलान छथि।

    हिन्दी यदि हस्तिनापुरवाली राजकन्या थिकी,

    मैथिलीओ मिथिला-मुनिकन्या समान छथि।

    स्रोत :
    • पुस्तक : हरिमोहन झा रचनावली खण्ड-4 (पृष्ठ 44)
    • रचनाकार : हरिमोहन झा
    • प्रकाशन : जनसीदन प्रकाशन
    • संस्करण : 1999

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