हज़ार वर्षों से चले आ रहे एक प्रश्न का उत्तर
hazar warshon se chale aa rahe ek parashn ka uttar
आसित आदित्य
Aasit Aditya
हज़ार वर्षों से चले आ रहे एक प्रश्न का उत्तर
hazar warshon se chale aa rahe ek parashn ka uttar
Aasit Aditya
आसित आदित्य
और अधिकआसित आदित्य
मर जाते हैं उसी रोज़ हम
जिस रोज़ भूल जाते हैं सपने सजाने का सलीक़ा
ग़ौर से देखो तो पाओगे
कि उम्मीदों की बदौलत चलती हैं साँसें हमारी
ऑक्सीजन का नंबर दूसरा है
हर रात खँगालता हूँ हसरतों की पोटली
मुस्कुराहटें कभी-कभार ही नसीब होती हैं
आमतौर पर हाथ आते हैं आँसू
फिर भी नहीं भूलता खँगालना उसे
और मेरे इनसाइक्लोपीडिया में इसे ही जीना कहते हैं
- रचनाकार : आसित आदित्य
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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