एक
उस ओर उजाले की तलाश में
चलती धरती ने
जब उजाले की मिथ्या भंग की
मनुष्य त्राहिमाम-त्राहिमाम करते
सूर्यदेव तक पहुँचे
सूरज ने तपते हृदय से तंज़ किया
पृथ्वी चंद्रमा से दूर होती जा रही है
मेरा ताप पृथ्वी को आघात पहुँचा रहा
प्रेम की पराकाष्ठा का क्या करूँ
हे मनुष्य!
अपने भद्र देवों से पूछो
पूछो—ग्रीक, चीनी, यूनानी देवताओं से
कहो इंद्र से—
वह जर्मनी में जर्मन सीखे बिना
प्रवेश नहीं कर सकते
दक्षिण कोरियाई तुम्हारा बहिष्कार करेंगे
सबकी अपनी सभ्यताएँ जंगलों से निकलकर
जंगल काटने लगी हैं
भागते पशुओं को भूनकर
विलाप किया जा रहा है
तुमने मेरी क्रियाओं से प्रेरणा लेकर
एक कण में कई ईश्वर भर दिए
जिन्होंने जापान से वियतनाम और
सीरिया से ग़ज़ा को मोक्ष-द्वार पर खड़ा किया है
मेड इन अमेरिका का लेबल
तुम्हें विचलित नहीं करना चाहिए
विष्णु कितनी बार अवतार लेंगे
तुमने तो हर नेता को कल्कि बताया है
नारायण निर्विकार भाव से नाराज़ हैं
प्लास्टिक देवता अमर हैं
उनकी आराधना कीजो
नदियों की दिशा बदल
आज मनुष्य किसी देवता से कम थोड़े ही है
पर्वतों के नामकरण से लेकर
सीमा-रेखा में मरते प्रवासियों के
आँकड़ों को दर्जा देने तक
किसका कितना
और कौन आतंकवादी
कौन बेगुनाह
सब निर्धारित तो तुम ही करते हो
तो मेरे प्रकोप से बचने हेतु
मुझे अर्घ्य दीजिए
तुम्हारी हर मनोकामना पूरी हो,
कामी!
दो
कामना से हसदेव याद आते हैं
अपने बच्चों की कहानियों में
उनका इतिहास दोहराऊँगी कि
उनके परपोतों के काल में
हसदेव का कोयला इस्तेमाल होगा
जो मुझे इक्कीसवाँ साल लगते ही कटने शुरू हुए
जिसकी खुदाई आदिवासी औरतों के सीनों
और पुरुषों के सिरों को कुचलकर की गई
उनके गमछे के पसीने
और आँखों का पानी
अब इसी मिट्टी के अंदर समाहित है
कई हज़ार साल बाद जब
यह धरती फिर खोदी जाएगी
तो इसमें से तेंदू तोड़ने पेड़ पर चढ़े बच्चे
महुआ तोड़ने गई औरतें
और सुअर चराने गए उनके पतियों
या सरकार के आँकड़ों और प्रमोशनों के मुताबिक़
तथाकथित नक्सलियों की देह के कोयले मिलेंगे
ये कोयले आने वाले हज़ारों सालों तक जलते रहेंगे
ताकि कोई और हसदेव न कटे।
- रचनाकार : प्राची
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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