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हाथों में विचार और प्रेम

hathon mein wichar aur prem

रविंद्र स्वप्निल प्रजापति

रविंद्र स्वप्निल प्रजापति

हाथों में विचार और प्रेम

रविंद्र स्वप्निल प्रजापति

और अधिकरविंद्र स्वप्निल प्रजापति

    हाथों में विचार नहीं होते पर उतरते हैं उनमें

    नीली लाल नशों में भरी ऊष्मा में से गुज़रते हुए

    उँगलियों के पोरों में आकर छूते हैं मेरी दुनिया

    इसलिए कभी-कभी हाथों में विचार दिख जाते हैं

    हाथ दुनिया की सुंदरता का हिस्सा हैं

    उनकी हथेलियों पर फैल गया है विचारों का रंग

    विचारों से वंचित हाथों पर तुम लिखती हो

    विचार की एकमात्र लाइन—अपने हाथ देखो

    सड़क से बहुत अंदर काम में डूबे हुए लोग

    टेलीफ़ोन लाइन के लिए सड़क खोद रही महिला

    देखती है अपने हाथ और देखती है शहर

    लड़की देखती है अपने हाथ में मिट्टी

    उसकी हथेलियों में विचार

    गंदले पानी की तरह लगे हुए जाते हैं

    विचार और प्रेम के बिना टेबल पर फ़्रीज़ हो चुकी है

    डेस्कटॉप पर माउस और हैंग स्क्रीन में बदल चुकी है

    चार हज़ार रुपए पाने वाली लड़की

    जिसके हाथों में विचार पसीने की गंध जैसा है जो

    माउस और की-बोर्ड पर मैल की तरह दिखता है

    सबसे अधिक डरते हैं विधायक

    उसके क्षेत्र में विचार पैदा करने वाले लोग

    जल्दी काम पूरा करें और चले जाएँ

    विचारों से रहित हाथों से विधायक नहीं डरते

    विचार वाले हाथ उनको ज़िद्दी दिखते हैं

    विधायक डरते हैं काम करने वाली बाई के हाथों में

    कोई-कोई कविता लिखने वाली लड़की

    विचार तो नहीं रख रही

    विचार की-बोर्ड और माउस के मैल में भी पैदा होते हैं

    सरकारें नहीं चाहतीं कि यह बात सार्वजनिक हो जाए

    अपने हिस्से के विचारों और पसीने की हल्की गंध

    हाथों में विचार नहीं होते, पर उतरते हैं कभी-कभी

    इस बात से डरते हैं वोट माँगने वाले।

    स्रोत :
    • रचनाकार : रविंद्र स्वप्निल प्रजापति
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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