हमारे ठहरने पर भी चलता है सब कुछ ज्यों का त्यों
hamare thaharne par bhi chalta hai sab kuch jyon ka tyon
मिथलेश शरण चौबे
Mithlesh Sharan Chaube
हमारे ठहरने पर भी चलता है सब कुछ ज्यों का त्यों
hamare thaharne par bhi chalta hai sab kuch jyon ka tyon
Mithlesh Sharan Chaube
मिथलेश शरण चौबे
और अधिकमिथलेश शरण चौबे
उस पार की किंवदंतियों से
सूर्य धीरे-धीरे आकर फैलता है
शुक्र अपनी चमक पर थोड़ा इतराता है और
सप्तर्षि निरापद टँके रहते हैं
बछेरू पूँछ हिलाते पीते हैं दूध
दोनों समय अनवरत
बिल्ली मौक़ा देख झपट्टा मारती है छींके पर
खिड़की के टूटे काँच से रोज़ की तरह आकर
चिड़िया रात की बची रोटी कुतरती है
शब्द अपने उतरने तक लाश की तरह
पंखें से लटकते रहते हैं
ध्वनि मृदंग की थापों के बीच
अपने होने का इंतज़ार करती है और
राग किसी जा चुकी गायिका के आलाप का
अपनी बची-खुची ज़िंदगी को पूरा
करते हैं आदमी
शेष रहे प्रतीकों पर मुग्ध हो उठती है पृथ्वी
धीरे-धीरे वाष्पित होता है
पुनः आने के लिए
रहा-सहा पानी भी
एक नियत समय पर
हमें रोक दिया जाता है और
सब कुछ ज्यों का त्यों चलता है।
- रचनाकार : मिथलेश शरण चौबे
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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