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हाँ हलो! गदेलन के बाबू?

haan halo! gadelan ke babu?

अनुज नागेंद्र

अनुज नागेंद्र

हाँ हलो! गदेलन के बाबू?

अनुज नागेंद्र

और अधिकअनुज नागेंद्र

    हाँ हलो! गदेलन के बाबू? बिट्टी कै अम्मा बोली थै।

    कुछ हालि खबर ना मिली एहर, चौगिरदा इहै टटोली थै।

    तू कहाँ अहा, बाट्या कइसे, हमका चिन्ता खाए बा।

    एहमू तौ कहर किरोना कै कुल ढाहन-बिहन मचाए बा।

    सब अपने घर मा सँसा अहयँ कुल दर-दुकान कै बंदी बा।

    सब आवाजाही रुकी अहै, कुल निकरै कै पाबंदी बा।

    खेती-बारी बिललानि अहै, गोंहू कै परी मड़ाई बा।

    ओहमू इस्कूलौ बंद अहै, लरिकन कै छूटि पढ़ाई बा।

    बाकी तौ बाटइ ठीक-ठाक, पइसा कउड़ी कै तंगी बा।

    सब रान्ह-परोसी कटा फिरयँ, दुख मा के साथी संगी बा।

    भीटा कै महुआ चुअत अहै, आमे मा लाग टिकोरा बा।

    बगिया कइती कम निकरीथै, निउरहवा बड़ा छिछोरा बा।

    मुर्रहिया भइंस छुटानि अहै, पंडिया के चढ़ा बोखार अहै।

    काल्हिन से बाटइ बुत्त परी, मुँह से टपकावति लार अहै।

    हमरौ करिहांव पिराति अहइ, मायिउ के पकड़े खाँसी बा।

    अब कहाँ-कहाँ अँटि पाई कुल हमरेन जियरा का फाँसी बा।

    फूने पै काउ गिनाई अब, कुछ लरिकन कै फरमाइस बा।

    जब तक ना पूरी होइ जाए, घरहूँ मा कहाँ रहाइस बा।

    केहुकै बनियानी फाटि अहै, केहुकै पैजामा भसका बा।

    कुछ सुरती, पान, सुपारी कै बाबू कै अलगै चसका बा।

    चप्पल कै बद्धी टूटि अहै, हत्था बा उखड़ा नलका कै।

    अब कउन दवाई लइ आई बड़की बिटिया के झलका कै।

    धमचाचर छोड़ा एहमू कै, कुछ आपनि हाल बतावा ना।

    हम सुने नौकरिव छूटि अहइ, मुल घरे भागि के आवा ना।

    जइसे-तइसे दिन काटि लेया तू कुछ दिन अउर मुसीबत बा।

    सबसे बढ़ि, हमरी खातिर तौ, तोहरेन जियरा कै कीमत बा।

    रातिउ-दिन देई-देउता से हम तोहरै खैर मनाई थै।

    जइसेन जिउ होय तफाउत कुछ, हम तोहका फून लगाई थै।

    कुछ दिन की खातिर यार-दोस से आपन नाता तोड़ि देह्या।

    जब तक डेर रहै किरोना कै तू घर कै चिन्ता छोड़ि देह्या।

    हम जइसे होये काढ़ि-मूसि सब आपन काम चलाइ लेब।

    हम कतहूँ हाथ पसारब ना, भल ऐक्कै टेमी खाइ लेब।

    अब फून धरा फिर बात करब अम्मा धोती धोई हम।

    ननकउना अहइ भुखान बहुत जल्दी से रोटी पोई हम।

    स्रोत :
    • रचनाकार : अनुज नागेंद्र
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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