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गुज़र जाने के बाद भी

guzar jane ke baad bhi

पल्लवी विनोद

पल्लवी विनोद

गुज़र जाने के बाद भी

पल्लवी विनोद

और अधिकपल्लवी विनोद

    लोग पूछते हैं प्रेम की याद आती है

    ऐसे बेवक़ूफ़ाना सवालों का जवाब

    भला क्या ही हो

    कैसे कहूँ कि याद आने-जाने जैसा

    कुछ भी नहीं होता हमारे बीच

    सिगरेट थोड़े ही है

    जो जले और धीरे-धीरे ख़त्म हो जाए

    यहाँ एक धूनी है जो जलती ही रहती है

    मन चंदन हो जाता है

    मेरी अस्थियाँ भसम बन जाती हैं

    तिलिस्म सा ये संसार

    असली-नक़ली या मिलावटी

    कैसे पहचानोगे

    तुमने तो प्यार किया ही नहीं

    थोड़ा डूबो

    तलहटी तक देख आओ

    फिर ऊपर आना

    भरने दो फेफड़ों में पानी

    थोड़ी देर घुटने देना दम

    प्रेम साथ होगा तो बचा लेगा

    पेट में तैरती मछलियाँ एक दिन मर जाएँगी

    लेकिन उनका अक्स उसकी आँखों में

    तैरता रहेगा उम्र भर

    तुम कछुआ बन कवच में छिपने का ढोंग मत करना

    कँटीली झाड़ियों में तितली-सा उड़ना

    प्रेम तुम्हारे पंख के रंगों में भरा पड़ा है

    किसी की उँगलियों पर छूटकर भी कम नहीं होगा

    जब थक जाना

    दो चट्टानों के बीच की आड़ में छिप जाना

    महसूस करना हरसिंगार तुम्हारी नंगी पीठ के नीचे मचल रहे हैं

    होने देना प्रेम को विवस्त्र

    देखना उसको अमावस की रात में

    पहनाकर सुबह का उजाला

    घूँट-घूँट पीते जाना

    चुभने देना कंकड़ तपती ज़मीन के

    रेल की पटरियाँ और खिड़कियाँ

    साथ-साथ तय करती हैं दूरियाँ

    पर दृश्य दोनों को अलग दिखते हैं

    वैसा ही है प्रेम

    सबकी तस्वीर अलग उतारता है

    जैसे सफ़र ख़त्म होने पर

    डिब्बे की महक भी उतरती है तुम्हारे साथ

    वो भी रह जाता तुम्हारे पास

    गुज़र जाने के बाद भी।

    स्रोत :
    • रचनाकार : पल्लवी विनोद
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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