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समय-असमय क्या है?

जब कोई पहुँच गया : अतिथि!

घर में चावल है

लंबी ठाँव पड़ी है

जो है लेते आओ

वरना दौड़ो बाज़ार

खाना पकाकर

परोसना है जल्दी से।

अतिथि का मतलब ही अजीब

कमर तो टटोलते नहीं,

अहाते में आते आते

पहले क़ब्ज़े में कर लेते

तुम्हारे पालतू कुत्ते को,

क़ब्ज़ा कर लेते सोफ़ा

और पलंग पर

अख़बार और फिर लौटते समय

तोड़ते फूल,

उखाड़ लेते

सुर्ख गुलाब की क़लमी डाल!!

बातों में उत्साह होता अतः

उन्हें कुछ कहा नहीं जा सकता

एक आवाज़ देकर ड्राइंग रूम में

और दूसरी में

सीधे हाज़िर बेडरूम में!!

बेचारे आप

मुँह बाए देखते रहो

दाँत दिखाती हँसी।

अतिथि की तिथि या वार क्या होता?

जब जो पहुँचा

मन हो या हो

किवाड़ खोलो!

स्रोत :
  • पुस्तक : बीसवीं सदी की ओड़िया कविता-यात्रा (पृष्ठ 293)
  • संपादक : शंकरलाल पुरोहित
  • रचनाकार : सेनापति प्रद्युम्न केशरी
  • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
  • संस्करण : 2009

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