ग्रीष्म मध्याह्न में गलतेश्वर
greeshm madhyahan mein galteshwar
भगवती कुमार शर्मा
Bhagwatikumar Sharma
ग्रीष्म मध्याह्न में गलतेश्वर
greeshm madhyahan mein galteshwar
Bhagwatikumar Sharma
भगवती कुमार शर्मा
और अधिकभगवती कुमार शर्मा
झंझा के थप्पर-सा कालप्रहार सहकर
खड़ा यह शिवालय,
ज्यों घायल योद्धा।
नृत्यांगना, मिथुन शिल्प, मृदंगपाणि,
अश्व, रथ, अनुचर, द्वारपाल;
पाषाण में हू-ब-हू अंकित विश्व पूरा...
खण्डहर सारा—
ज्यों सपना टूटकर ढेर हो गया।
धुँधली झीनी जलती ज्योति आरती की,
पुजारी भी कराहता, ज्यों बीती हुई गूँज।
टूटी सीढ़ियाँ ये
नदी की कगारें भी
प्रागितिहास-पशु के अस्थिपंजर!
लुटे पथिक-से पेड़,
रेत बिछौना लू का,
क़दम समय के।
महाकाल कथित इस व्यथाकथा के
मूक श्रोता केवल संहारदेव शिव!
- पुस्तक : भारतीय कविताएँ 1987-88 (पृष्ठ 64)
- संपादक : र. श. केलकर
- रचनाकार : भगवती कुमार शर्मा
- प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन
- संस्करण : 1992
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