हर मूर्ख अपने आपको तपस्वी समझता है
हर लफ़ंगा मनीषी
मुझे चाहकर भी ग़लतफ़हमी नहीं हो पाई
मैं सिर्फ़ एक मूर्ख लफ़ंगे की तरह नमूदार हुआ
दुनिया के पापों और पुण्यों के बीच अपनी जगह बनाने के लिए
न मैंने क्रिश्चियन को केवल क्रिश्चियन कहा
न मिशनरी को केवल मिशनरी
मैंने मक्का मदीना जाने का मन बना लिया पक्के तौर पर
लेकिन मेरी काफ़िरी को देखते
मेरे मुस्लिम दोस्तों ने ऐसा न करने की सलाह दी
फिर मैंने करबला जाने की कोशिश की
लेकिन तब तक स्वतंत्रता के रखवाले
इराक़ी सीमाओं को बंद कर चुके थे
मैं वृंदावन गया अलबत्ता
जहाँ मुझे वेणुगोपाल मिला
जो स्कूटर के पीछे बैठा गन्ना चूस रहा था
मैंने संटी से धमकाकर एक बकरी को भगाया
और निधिवन में प्रवेश किया
हरिदास बाबा की समाधि पर मुझे सचमुच रोमांच हो आया
लेकिन वहाँ मिला मुझे एक पंडा
जो अभी-अभी कृष्ण भगवान से मिलकर आया था
और थरथर काँप रहा था
जब उस लीला-पुरुषोत्तम ने देखा मैं सुस्त घोड़े की तरह उसे देखे जा रहा हूँ
तो उसने चलते-चलते कोशिश की
कि मैं उसे दो रुपए चंदे के दे दूँ
अब मेरी हँसी छूट गई और उसने मुझे कस के श्राप दिया
रात स्टेशन की बेंच पर
खटमलों ने मार-मार जूते मेरा परलोक सुधार दिया
मैंने कनॉट प्लेस से बाँसुरी ख़रीदी और चाँदनी चौक से पेड़े
मैं हरी क़मीज़ पहनकर मंदिर में घुसा और भगवा ओढ़कर तवाफ़ को निकला
मैंने ढेर सारी कविताएँ लिखीं
लेकिन आलोचकों ने अपनी सुविधा के हिसाब से छह-सात चुनीं
और भुनगे की तरह मुझे उन पर ठोक दिया
फिर मैंने केले खाने शुरू किए
और छिलके आमतौर पर पैग़ंबरों के रास्ते में फेंकता गया
मैंने तमाम ज्योतिषियों के हाथ बाँचे
औलियाओं मुल्लाओं के फाल निकाले
एक मुबारक दरगाह पर मुझे एक मुबारक महात्मा की मुबारक पूँछ का बाल मिला
मैंने उसकी खाल निकाल ली
जिसकी जैकेट बनवाकर मैं फ़ायरिंग स्क्वाड के सामने चला
गोलियाँ चलने से पहले मैं दो-एक बातें और आपको बता दूँ
पवित्र आत्माओं के दिन
गोल्फ़ लिंक का एक क्रांतिकारी
मार्क्सवाद की चाँदनी में नौकाविहार कर रहा था
मैंने उसका बजरा पलट दिया
जब उसने देखा यह तो सचमुच की हुई जा रही है
उसने दिल कड़ा करके गोता लगाया
और गुनगुनी रेत की तरफ़ भागा
अगले दिन वह तमाम अख़बारों में बयान देता डोला
क्रांति के दुश्मनों का नाश हो
मेरा बजरा पलट दिया हरामख़ोरों ने
मैंने कौए की चोंच और छछूँदर के नाख़ून एक ताबीज़ में भरे
और मकर संक्रांति के दिन कमर तक गंगा में खड़े हो भविष्यवाणी की
2053 के तेईसवें गुरुवार को
दुनिया के सारे ज्योतिषी नष्ट हो जाएँगे
मुझे यक़ीन था कि मेरी भविष्यवाणी सच साबित होगी
क्योंकि दुनिया में भविष्यवाणियाँ बस ऐसे ही साबित हो जाती हैं
मुझे अलीगढ़ी के लिए ज्ञानपीठ मिला
और हाथरसी के लिए साहित्य अकादेमी
हालाँकि मैं लगातार हिंदी में लिखता रहा
मेरी सूरत देखकर किसी की तबियत नहीं ख़राब होती थी
इसलिए मुझे विद्वान नहीं माना गया
मैंने तीज-त्यौहारों पर अपनी प्रतिबद्धताओं के बक्से नहीं खोले
मैं कभी कहीं इतना महत्त्वपूर्ण नहीं हो पाया
कि लोग बहस करते
यह शैतान की औलाद था या भगवान की
मैंने विचारहीन गर्भ का मज़ाक़ उड़ाया
लेकिन मैंने कभी जन्म का मज़ाक़ नहीं उड़ाया
मृत्यु को तो मैंने सदा बड़े आदर के साथ देखा
मैंने कुछ राजनीतिक और सांस्कृतिक भविष्यवाणियाँ भी की थीं
जिन पर किसी ने ध्यान नहीं दिया।
- रचनाकार : संजय चतुर्वेदी
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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