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एक पर्वत अपनी महानता से लाचार है

ek parwat apni mahanta se lachar hai

तुषार धवल

तुषार धवल

एक पर्वत अपनी महानता से लाचार है

तुषार धवल

और अधिकतुषार धवल

     

    मूर्द्धन्य मठाधीशों के लिए

    उत्तुंग शिखर!
    तुम्हारी विशालता का मायावी सौंदर्य बाँधता है
    स्तब्ध आकर्षण में 
    तुम बन जाना चाहते हैं हम!

    कोहराये बादलों के कोमल झाग की लिहाफ़ में
    चेहरे पर बर्फ़ीले सौंदर्य का दमकता फेसपैक लगाए तुम अलसाए ऊँघ रहे हो
    धूप के कैमरे बीच-बीच में फ्लैश चमकाते हैं तुम पर
    किसी गुनगुने बाथटब में धीरे से तुम आधी-सी करवट ले लेते हो
    और वाह-वाह करती कुहासे की यह भीड़
    तालियाँ बजाती है 

    ये तस्वीरें छपेंगी तुम्हारी हर जगह
    हर जगह नया विमर्श रचा जाएगा
    महानता का सौंदर्यशास्त्र लोक-सौंदर्य को प्रेरित करेगा
    भूकंप और तूफ़ानों के बीच से उगना तुम्हारा हमारी सिद्धियों में
    संघर्ष का खुरदुरापन भरेगा

    निर्धारण का अंतिम सत्य हो तुम

    जिन तूफ़ानों ने उगने से रोका था तुम्हें
    अब तुम्हारे इर्द-गिर्द कुहासे की भीड़ बन गए हैं  
    वे गीत गाते हैं तुम्हारी विजय के, सहलाते हैं तुम्हें
    और संतुष्ट हो गए हो तुम मगन और सुन्न तुम्हारी आँखों को धुँध ने घेर लिया है
    वही धुँध जो यहाँ से कोहराये बादलों के कोमल झाग की लिहाफ़-सी नज़र आती है!   

    कूट चातुर्य है यह उन्हीं तूफ़ानों का
    जिनने उगने से रोका था तुम्हें   

    तुम्हारे शब्द तुम्हारी गाथाएँ अब जो महानता लिए आती हैं हम तक
    वे उन्हीं कुहासों से छन कर आती हैं
    उन पर उन्हीं तूफ़ानों की मुहर होती है
    जिनने उगने से रोका था तुम्हें

    अब देख नहीं पाते हो तुम यहाँ घाटियों में
    और क्या क्या रंग हैं जीने के
    कोई नदी कैशोर्य पा रही है और किनारे तोड़ कर बह जाना चाहती है
    उन पत्थरों में दबे हुए लावे का संताप चुप हो गया है अचानक
    वही आग 
    आँखों में 
    पेट में 
    चूल्हे और लौ में 
    क्या-क्या अर्थ पा रही है
    कई और सदाबहार जंगली बेलें थीं 
    असंस्कृत अनगढ़ कुछ हवाएँ थीं जो 
    तुमसे उलझ सकती थीं
    तुम्हारे व्याकरण के बाहर
    घाटियों में बहुत रंग हैं वसंत है मवाद भरे घाव हैं
    जीवन अपने चरम का मत्त नर्तन कर रहा है  
    पर हमारी लघुता का सर्जन नहीं पहुँच पाता है तुम तक
    जहाँ कोलाहल है महानताओं के दर्शन का  

    वहाँ तुम संतुष्ट मगन मूर्च्छित हो
    यहाँ जीवन का ख़ूनी खेल चल रहा है

    शिखर पर तुम अकेले हो
    नहीं जीत पाए उन तूफ़ानों को जिन्होंने रोका था तुम्हें 
    उनकी सभ्य और जुगाड़ सिद्ध भीड़ के 
    ठंडे निर्मनुष्य निर्जन और कलरव से  
    नहीं देख सुन पाते हो तुम अपनी ऊँचाई से 
    इस गहराई को
    आवाज़ और रोशनी की आवाजाही पर कई अवरोध हैं हमारे बीच

    महानता का आत्मघाती बोध नसों में उतार कर
    सभ्यताएँ निजात पाती हैं महानताओं से 

    शिखर महानता की निर्जीव समाधि है
    वहाँ जीवन नहीं पनपता।

               
    स्रोत :
    • रचनाकार : तुषार धवल
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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