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घायल मानवता

ghayal manawta

अनुवाद : जितेन्द्र उधमपुरी

अरविन्द

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घायल मानवता

अरविन्द

और अधिकअरविन्द

    आज देखी है मानवता

    मैंने कितनी घायल,

    जगह-जगह मांस के टुकड़े

    छींटे हज़ारों

    धरती-अंबर लाल ही लाल।

    फूलों में वह रंगत नहीं

    ही वह ख़ुशबू।

    बेल-वल्लरियों पर रौनक पहले सी

    कोई प्रेम मोह

    साँझ का गौरव

    श्वेत दूध-सी सुबह भी नहीं

    सूर्य की किरणों में नहीं वह तपिश,

    चमक भी नहीं पहले-सी।

    चाँदनी में नहीं अब वह ठंडक

    ही वह लौ

    हवा में नहीं है वह शोख़ी

    ही वह चुलबुली आदत

    तवी की लहरों में नहीं शिद्दत पहले सी

    ही वह हिलोरें

    गलियों में आज वह पदचाप

    कोई सुनता कान लगाए।

    नयनों में वह नींद नहीं

    अश्रुओं में वह तलाश

    बाल, बालाओं के मुखड़ों पर

    नहीं अब वह रौनक

    खेल में रुचि कोई

    दिलों में ऐसा विष जमा है

    जो घुलता उतरता है

    आज देखी है मानवता

    मैंने कितनी घायल।

    स्रोत :
    • पुस्तक : आधुनिक डोगरी कविता चयनिका (पृष्ठ 153)
    • संपादक : ओम गोस्वामी
    • रचनाकार : अरविन्द
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2006

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