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घर में सबसे पहले

एक दरवाज़ा है

सबसे पहले

दरवाज़े पर किवाड़

किवाड़ पर साँकल

घर में कई-कई दीवारें हैं

दीवारों पर

नाचते रहते रंग हैं

और रेखाएँ बीमार हैं

एक घड़ी है

जिसमें काँटे घूम रहे हैं गोल-गोल

धरती से होड़ लेते

कोनों में घर के

मकड़ी के जाले हैं कई

मकड़ी के जालों के नीचे

एक-एक कुआँ है

घर में तीर-तलवार हैं

रक्त से सना

मुसीबतों से लड़ता मौसम है

हवा है कुछ गैलन

कुछ टैंक पानी है

अँधेरा है फैला हुआ

और ऊपर रोशनी भी गिरती हुई

तिरछी

घर में मैं हूँ, तुम हो

औरतें हैं, बच्चे हैं

और वृद्धजन भी

यौवन है ताश की पत्तियाँ

फेंटता हुआ

घर में सब रिश्ते-नाते हैं

एक-दूसरे से बँधे

एक-दूसरे से संत्रस्त

घर में संभावना है

और धान फटकती असंभावना भी

चूल्हे तर बैठी है माँ

ऊष्मा बचाए रखने की जुगत में भिड़ी

घर में कुछ ज़रूरी चीज़ें हैं

कुछ दिखाई पड़तीं, कुछ छुपकर रहतीं

यहाँ सुबह से शाम तक जाने की सवारी है

और शाम से सुबह तक लौट आने की भी

एक रास्ता इधर है

घर के बाहर निकल आने का

एक रास्ता इधर है

घर में भटक जाने का

घर में एक छिपकली

रोज़ दीवार पर चढ़ती है

रोज़ गिर जाती है

घर में जाने कितनी मक्खियाँ रोज़

बिना सूचना के मर जाती हैं

गरुड़ पुराण का एक पन्ना रोज़ फट जाता है।

स्रोत :
  • रचनाकार : हरे प्रकाश उपाध्याय
  • प्रकाशन : हिंदी समय

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