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घर आना

ghar aana

मौलश्री कुलकर्णी

और अधिकमौलश्री कुलकर्णी

    घर आना हर बार

    जाना-पहचाना होता है

    भीतर रह रहे आठ साल के बच्चे के लिए,

    जिसे उम्मीद है कि इस बार

    उसके साथ कुछ बेहतर होगा।

    आठ साल के उस बच्चे के ज़ख़्म

    अभी कच्चे हैं

    जो मिले हैं उसे

    बड़ों की खाल पहने

    घायल, घबराए बच्चों से

    वे बच्चे जो भर नहीं पाए अपने घाव,

    पीढ़ी-दर-पीढ़ी सौंपते गए इन्हें

    विरासत में।

    ये बातें तुम अब समझने लगे हो,

    लेकिन नहीं समझता अभी

    तुम्हारे भीतर रह रहा

    आठ साल का बच्चा

    इसलिए वह तड़प उठता है जब

    बड़ों से तुम माँग लेते है वो

    जो उसे चाहिए था,

    वह बच्चा मानता है इसे अपनी कमी और

    बार-बार फोड़ता है अपना सिर

    पत्थर पर मारकर।

    वह अभी माफ़ करना नहीं जानता,

    वह सिर्फ़ आठ साल का है

    अभी नहीं सीख पाया है

    आँखें बंद कर सुकून से मुस्कुरा पाना।

    अब तुम्हें ये करना है कि

    उस छोटे, उदास, ज़ख़्मी बच्चे को

    कसकर गले लगाओ

    उसे दिखाओ कि

    प्रेम करना और माफ़ कर पाना

    कितना सुंदर है

    और ये भी कि जब सिर मारने से

    नहीं टूट रहे हों पत्थर

    तो बग़ल से निकल जाना कमज़ोरी नहीं

    ख़ुद की हिफ़ाज़त करना है।

    अगर हो सके तुमसे तो

    गले लगा लेना

    उन दो बूढ़े, घायल बच्चों को भी;

    इसलिए नहीं कि ये ज़िम्मेदारी है तुम्हारी,

    बस इसलिए कि तुम उनसे

    थोड़ा-सा बेहतर जान पाए हो…

    स्रोत :
    • रचनाकार : मौलश्री कुलकर्णी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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