गमपुर के लोग
gampur ke log
गमपुर को कोई नहीं जानता
और गमपुर भी किसी को नहीं जानता
गमपुर के लोगों की प्यास नदिया बुझा देती है
भूख जंगल का हरापन देखकर मिट जाता है
जीने के लिए
इन्हें कुछ और चीज़ों की ज़रूरत ही नहीं
गमपुर के लोगों को सूरज के चमकने और बुझने के विषय में कोई जानकारी नहीं
इन्हें लगता है दुनिया इतनी ही बड़ी है
जितनी उनकी ज़रूरतें
कभी-कभी लगता है
इनका नामकरण कोई सोची-समझी साज़िश तो नहीं!
न राशन-कार्ड
न आधार-कार्ड
न अक्षर-ज्ञान
उनके क़हक़हों के बीच पता नहीं कहाँ से आकर गिर पड़ती है मूक उदासियाँ!
ये लोग हवा में उच्छ्वास छोड़ते हैं और देखते हैं
आकाश की ओर
इन्हें लगता है कि आकाश की आँखें हैं
आकाश अपनी आँखों से निहारता है गमपुर को
ऐसे जैसे एक वही जानता हो गमपुर को!
इस बीच जब कोई उन्हें हिलाता है तो वह चौक पड़ते हैं और हँस देते हैं
चूँकि उन्हें कठिन दिनों में हँसने के सिवा कुछ नहीं आता
इसलिए वह बहुत बार
कुछ भी न कह कर बस हँस देते हैं
हँसी उनकी भाषा का सबसे सुंदर शब्द है
जिसके लिए बहुत बार उन्हें ज़रूरत नहीं पड़ती
संसार की किसी भी भाषा की
गमपुर के लोग अ-परिचय को पछाड़कर
ढूँढ़ लेते हैं परिचय से भरा हुआ
एक ब्रह्मांड!
वह ढूँढ़ने की तमाम प्रक्रियाओं में बार-बार ढूँढ़ लेते हैं 'ख़ुद' को
और तब एक बहुत बड़ी दुनिया बेहद मामूली हो जाती है उनके लिए
उच्छ्वासों और हँसी की भाषा से वह बार-बार हरा देते हैं
उस राजकीय अभिलेख को
जिसमें एक भाषा थोड़ी बेहया होते हुए बहुत कठोरता से कहती है
कि उद्दंड हैं गमपुर के लोग!
______________
* गमपुर, बीजापुर से 65 किलोमीटर दूर एक गाँव है।
- रचनाकार : पूनम वासम
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.