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गल्प

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डॉ. अजित

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डॉ. अजित

और अधिकडॉ. अजित

    मुद्दत तक इतना ख़ाली रहा हूँ मैं

    यदि कहूँ आज बिजी हूँ थोड़ा

    सुनने वाले को लगता है

    ये नया झूठ है मेरा

    और बेवजह का भाव खा रहा हूँ

    मैं सदा उपलब्ध रहा हूँ

    फ़ोन पर

    असल में

    सपने में

    चिट्ठी-पत्री में

    मेरी सदा उपलब्धता

    एक क्षेपक की तरह उपस्थित रही जीवन में

    इतना ख़ाली और औसत जीवन था मेरा

    मेरे पास कई-कई साल नए लतीफ़े होते

    इतना कम घटनाप्रधान जीवन था मेरा

    कि मैं इतना ही बता सकता था रोचकता से

    फलाँ दिन इतनी देर से बस मिली थी मुझे

    निठल्लेपन के बर्तन में पानी को

    शराब समझकर पीता रहा हूँ मैं

    मेरी बातों में जो लचक बची है

    ये उन्हीं दिनों की देन है

    मेरे पास कोई क़िस्सा ऐसा नहीं

    जिस पर किसी को रश्क हो सके

    मेरे पास अधिकतम बातें

    बेवक़ूफ़ी भरे सपने देखने की हो सकती हैं

    सपनों का पीछा करना मुझे कभी नहीं आया

    मैं बदलता रहा हूँ सपने

    देशकाल और परिस्थिति के हिसाब से

    जिसके लिए

    सपनों ने कभी माफ़ नहीं किया मुझे

    फ़ोन पर कुछ ही देर में

    दो वाक्य जकड़ लेते है

    मेरी ज़बान

    और बताओ...

    सब बढ़िया...

    या फिर खिसियाकर हँसने लगता हूँ

    ताकि हँसी के शोर बढ़ जाए बात आगे

    मैंने बनाया ख़ुद को आग्रह के समक्ष कमज़ोर

    मीलों की यात्राएँ केवल मेल-मिलाप के लिए

    मतलब की बात पर सिल गए होंठ

    मैसेज भेजकर माँगे पैसे उधार

    और भी क़िस्म-क़िस्म की मदद

    दोस्तों में रहा चिट्ठीबाज़

    जताई सारी नाराज़गियाँ

    ख़तों के ज़रिए

    दरअस्ल,

    मैं उपलब्ध था

    मैं उपस्थित था

    मैं तत्पर था

    मैं क़तार में था

    मैं विचार में था

    मैं व्यवहार में था

    इन सबका एक अर्थ यह भी था

    मैं अपने ख़ालीपन के साथ

    अपने संपर्कों के प्यार में था

    जिसे कुछ समझ पाएँ

    और कुछ नहीं

    जो नहीं समझ पाएँ

    उनसे कोई शिकायत नहीं मुझे

    उन्होंने मुझे चुना या मैंने उन्हें

    इनसे ज़्यादा ज़रूरी यह था

    मुझे वक़्त ने चुना था

    सुनने के लिए

    सुनाने के विषय सदा से कम रहे मेरे पास

    इस बात का खेद है मुझे

    मेरी अनुपस्थिति में

    शायद ही किसी को याद आता हो

    मेरा कोई क़िस्सा

    मैं लोगों के जीवन में शामिल रहा

    एक कविता तरह

    इसलिए भी लोगों के जीवन में

    कहानी की तरह याद नहीं

    कविता की तरह विस्मृत रहा हूँ मैं।

    स्रोत :
    • रचनाकार : डॉ. अजित
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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