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गालियाँ

galiyan

प्रेम रंजन अनिमेष

और अधिकप्रेम रंजन अनिमेष

    वे आदिम प्रवृत्तियों की ओर

    ले जाती हैं हमें

    अब यह ठीक ठीक पता नहीं

    कि आदिम लोग

    कौन-सी गालियाँ देते थे

    या कि देते भी थे या नहीं

    शास्त्रीय साहित्य की

    सबसे बड़ी चूक है

    कि वह हमें

    उस ज़माने की गालियों की

    जानकारी नहीं देता

    जबकि हो सकता है कि गालियों में

    उस समय और संस्कृति का

    अधिक प्रामाणिक और जीवंत इतिहास हो

    जैसे कि मृद्भांडों में

    यह ग़ौर करना दिलचस्प है

    कि मनुष्यों और पशुओं की

    आपसदारी से बनी हैं अधिकतर गालियाँ

    और पक्षियों, पेड़ों और पत्थरों का

    अभी इनमें आना

    शेष है

    यूँ कहा यह भी जाता

    कि ईमानदार तीर की तरह हैं गालियाँ

    सामनेवाला प्रतिकार के लिए हो तैयार

    तो वापस तरकश में

    लौट आती हैं

    इस तरह सदा

    भरा रहता उनका कोश

    कोई कला चाहे वह कैसी भी हो

    अपनी पूरी तन्मयता में

    अन्य उन्नत कलाओं के पास पहुॅंच जाती

    इस तरह सुबह सवेरे स्नान करते

    पूरी चिंता पूरी लय में

    गालियों की मंत्रमाला गूँथते आदमी की कोशिश

    बिल्कुल एक भजन प्रार्थना वंदना-सी

    लग सकती है

    हार मानने वाली स्त्री के पास

    नाख़ूनों के सिवा

    उसका हथियार हैं गालियाँ ही

    और जर्जर बूढ़े के लिए

    निरीहता के बाद

    उसकी ढाल

    बच्चों के लिए

    उनकी फुन्नी को छोड़कर

    यही एक शग़ल

    जैसे कवि के पास

    सीधे विद्रोह कर

    मारे जाने के अलावा

    रास्ता है कविता लिखने का

    समय और दौर के साथ

    गालियाँ

    मान्य हो सकती हैं

    और मान्यताएँ

    गाली

    जैसे सज्जन, आदर्शवादी, ईमानदार

    कहना किसी को अभी

    उसे गाली देने की तरह हो सकता है

    जब याद करो तब जाती हैं

    इसलिए लंबी उम्र है

    गालियों की

    भाषाविज्ञानी नहीं मैं

    लेकिन जाने क्यों लगता है

    किसी ज़ुबान को धार के लिए

    लौटना होगा अपनी गालियों के पास

    और हालाँकि समाजशास्त्र उतना ही

    जानता हूँ जितना पेड़ की जड़ें

    मगर यह भी लगता है

    कि जब कहीं नहीं रहेंगे

    तो गालियों में ही बचे रहेंगे रिश्ते

    क्या यह सच नहींं

    कि आत्मीयता का सबसे मधुर और जीवंत छंद

    मंडप की थाल पर

    दी गई गालियों में है!

    स्रोत :
    • रचनाकार : प्रेम रंजन अनिमेष
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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