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गहरा समंदर है या राज़

gahra samandar hai ya raaz

द्वारिका उनियाल

द्वारिका उनियाल

गहरा समंदर है या राज़

द्वारिका उनियाल

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    उस गहरे समंदर के बीच एक टापू

    जहाँ वो एक छप्पर वाला मकान

    मकान के भीतर एक कमरा

    कमरे के नीचे एक सुरंग

    वो सुरंग एक राज़ है

    वो ले जाती है दूर एक पहाड़ी की तलहटी में

    जहाँ से वो ऊँची चढ़ाई शुरू होती है

    लेकिन तुम अकेले नहीं हो

    साथ में उन राज़ों की गठरी है

    जो भारी है, बहुत भारी

    इस भार ने तुम्हारा चेहरा सुखा दिया है

    माथे पे कुछ लकीरें उभर आईं हैं

    होठ अब मुस्कुराते नहीं

    आँखें सब कुछ छुपाती हैं जैसे

    गालों पे उन राज़ों की परत चढ़ी है

    मेकअप के मस्करा की तरह

    जो रात को गुलाब जल से भी नहीं उतरता

    अपने सिरहाने वो राज़ भी साथ सोते हैं

    वो साथ उठते हैं और साथ चलते हैं

    जाने कैसे मेरी जेबों में अब टॉफ़ियाँ नहीं

    कमबख़्त कहीं गिरकर बिखर भी नहीं जाते

    ये राज़

    गहरे हैं

    और शायद वो समंदर भी

    हाँ वही

    जिसके उस टापू में

    एक घर है

    हाँ एक छप्पर वाला

    हाँ जिसमें वो एक कमरा है

    जिसके नीचे से जाती है

    वो एक लंबी सुरंग

    वही सुरंग जो एक राज़ है

    स्रोत :
    • रचनाकार : द्वारिका उनियाल
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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