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फ़तिमा गुल की चिट्ठी

fatima gul ki chitthi

उदयन ठक्कर

उदयन ठक्कर

फ़तिमा गुल की चिट्ठी

उदयन ठक्कर

और अधिकउदयन ठक्कर

    मेरे प्रिय मणिलाल!

    याद है, मैं

    आलू ख़रीद रही थी

    बड़े दिन के मौक़े पर

    और आप दुकान में एकाएक

    पहुँचे थे।

    मेरी और आपकी

    वही थी

    पहली मुलाक़ात।

    फ़िर तो आप

    नित नए बहाने बनाकर

    अकसर मेरे घर

    जाया करते।

    उम्र थी, प्यार छलक रहा था

    मन में धुकधुकी मची रहती

    धर्म दूसरा था न...

    आप को यक़ीन था

    बापू का दिल बड़ा है

    मान जाएँगे राज़ी-ख़शी

    आपने उन्हें चिट्ठी लिख दी थी...

    बापू का जवाब आया,

    ‘ब्रह्मचर्य का क्या होगा ?

    शादी वो भी मुसलमान के साथ?

    तुम्हारी संतानें

    किस धर्म की कहलाएँगी?

    हिंदू हो जाने को तैयार है फ़ातिमा?

    धर्म क्या कोई चिंदी है

    जो उतारा और फेंक दिया?

    तुम्हारी ख़ातिर वो

    अपना घर-बार छोड़ेगी

    रीति-रिवाज छोड़ेगी

    प्राण भी छोड़ेने पड़ सकते हैं।

    तुम चाहते हो, मैं बा से सलाह लूँ।

    नहीं लूँगा

    उस बेचारी का

    दिल टूट जाएगा।

    —तुम्हारा, बापू।’

    महात्मा के मन की थाह

    कौन पा सकता है भला?

    शायद उन्हें अंदेशा हो कि कहीं

    नाम हो जाए ख़राब

    मुल्ला-मौलवी घूमेंगे गली-गली

    कि देखो,देखो!

    महात्मा भी डर गए।

    मणिलाल! सुना है,

    उन लोगों ने कोई हिंदू कन्या

    देख रखी है

    तुम्हारे लिए।

    उसी के साथ सुखपूर्वक रहो,

    आश्रम में बैठो और धूम मचा दो!

    ‘ईश्वर-अल्ला’ तेरो नाम।

    और मैं क्या कह सकता हूँ मणिलाल?

    ‘सबको सन्मति दे भगवान!’

    आपको कभी भूल सकूँगी या नहीं, नहीं जानती

    —फ़तिमा गुल,

    जो कभी आप की थी।

    स्रोत :
    • पुस्तक : तनाव-148 (पृष्ठ 3)
    • संपादक : वंशी माहेश्वरी
    • रचनाकार : उदयन ठक्कर
    • संस्करण : 2021

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