खेतिहर मज़दूर

khetihar mazdur

गुलज़ार हुसैन

गुलज़ार हुसैन

खेतिहर मज़दूर

गुलज़ार हुसैन

और अधिकगुलज़ार हुसैन

    कोहरे में सिमटी सर्द सुबह

    और दाँत किटकिटाने वाली

    ठंडी हवा के झोंकों के बीच वह उस खेत की पगडंडी पर

    बहुत देर नहीं बैठ पाता है

    बहुत देर तक बैठना चाहने के बावजूद

    ओस से गीली घास की छुअन उसे सिहरा देती है

    तलुओं से घुसती ठंडी छुरी-सी चुभन

    उसके हड्डियों को कँपकँपा देती है

    फिर भी वह वहाँ हर सुबह आता है

    हर मौसम की ख़ूबसूरती और बदसूरती की

    परवाह किए बिना वह निहारता है

    लहलहाती फ़सल की हरियाली

    वह सुनता है सरसराहट

    और भावावेश में सहलाने लगता है

    कच्चे गेहूँ के पौधों के सिरों को

    वह पौधों से बातें करता है

    लेकिन उनसे कभी कह नहीं पाता है

    कि खेत में कमैनी-कटैनी करते-करते

    खाद-पानी देते-देते

    वह जवानी से बुढ़ापे में

    प्रवेश कर गया है

    कि उसका झुका हुआ कमज़ोर शरीर

    फ़सल में कीड़े लगने की प्रक्रिया को

    शुरू में ही देख लेने में उसकी मदद करता है

    वह बहुत प्यार करता है

    रेलवे लाइन के इस पार वाले खेतों से

    यह जानते हुए भी

    कि तो ये सारे खेत उसके अपने हैं

    और ही इनसे निकलने वाला अनाज

    लेकिन क्या खेत की मिट्टी और लहलहाते पौधे जानते हैं कि कौन उनका अपना है

    खेतिहर मज़दूर या खेत-मालिक?

    स्रोत :
    • रचनाकार : गुलज़ार हुसैन
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।

    पास यहाँ से प्राप्त कीजिए