एक
सबके अगोचर में
सवार हो चुका प्रियतम पक्षी के कोमल पंख पर
गले में बाहें डाल
चोंच में चोंच डाल
नशीले अधरों से जी भर मधुपान किया मैंने।
उस पंछी ने गाया
सब्ज़ भोर का मोहक गीत
उसके हर गीत में
उतरती हर गीत में
साँझ की सुरंग-से अँधेरे की सीढ़ी चढ़
वह पंछी बंदी बना
स्वप्न के पिंजरे में
वह पंछी मेरा स्वप्नलेख।
उस पंछी की भाग्यलिपि लिखी है
मेरे अपने आँसू और ख़ून में।
दो
इतने दिन इस छत और
छाती में घोंसला किए पंछी
गुनगुना गीत गा
फ़रार हो जाएगा नीड़ से
अपने को छुड़ा लेगा मोहाच्छन्न गीत और
गीतों के माया बंधन से!
वह पंछी जानता है कि मैं पंखहीन
वह जानता है कि पंखहीन प्रिय पंछी
उड़ सकता लाख योजन।
जहाँ जाओ पंछी, जो गीत गाओ
पवन का सुर पकड़ गीत गाना
सपने की पालकी में उस देस जाना
आकाश की छाती चीर, वहीं नीड़ करना
जहाँ तिनके या घास नहीं,
भरे होंगे
मेरे हाड़, मांस समूचे नीड़ में।
- पुस्तक : बीसवीं सदी की ओड़िया कविता-यात्रा (पृष्ठ 330)
- संपादक : शंकरलाल पुरोहित
- रचनाकार : शंकर परिड़ा
- प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
- संस्करण : 2009
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.