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शहर सँ गाम धरि

भरा रहल छै चर-चाँचरि

खत्ता-खुत्ती, नदी-नाला, पोखरि-झाँखरि

बनबै लए घ'र, बसबै लए लोक

अग्गह सँ बिग्गह, बे-रोकटोक।

एकटा खाधि भराइ छै

डीह भरबाक लेल

दोसर खुनाइ छै

आ, फेर ओहो बिकाइ छै

फेर भराइ छै, तेसर खुनाइ छै।

क्रम चलि रहलैये निरंतर

लोक खाधिमे धँसल जा रहलैए

जनसंख्याक विस्फोट मुदा

बढ़ले जा रहलैए।

धरतीक कथे कोन

चंद्रमो बुक भ' रहलैए

अखन धरि अवंच जे

पताले शरण बँचलैए।

तँ सूनि लएह हौ बलि राजा

जे तपै छह इन्द्रपद लेल

से छह आब किछुए दिनुक खेल

नहिं कर' देतह तप पूर्ण

नै जाय देतह गोलोक

जखन मनुख ढुकतह भूलोक।

स्रोत :
  • पुस्तक : नमहर हो चद्दरि जटबए (पृष्ठ 32)
  • रचनाकार : अमरनाथ झा ‘अमर’
  • प्रकाशन : अनुप्रास प्रकाशन
  • संस्करण : 2021

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