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तुम्हें कितनी समानता चाहिए?

tumhein kitni samanata chahiye?

रेखा चमोली

रेखा चमोली

तुम्हें कितनी समानता चाहिए?

रेखा चमोली

और अधिकरेखा चमोली

    मुझे इतनी समानता चाहिए कि

    किसी दिन देर तक सोना चाहूँ तो

    मेरी नींद में चक्कर लगाएँ घर के काम

    सुनाई दें चाय-नाश्ते की पुकार लगाती आवाज़ें

    आँगन की धूल मेरी नींद की जलन बने

    दूसरों के छूट गए कामों को याद दिलाने के लिए

    कोई ताना राह देखता हो

    बल्कि कभी ऐसा हो तो जगने पर तुम कहो

    आज बड़ी अच्छी नींद आई तुम्हें

    कितनी तरोताज़ा लग रही हो

    तुम्हारे आस-पास होते ही

    मेरे हाथ मेरे कपड़े ठीक करने लगें

    मैं अपना दुपट्टा ढूँढ़ने लगूँ

    तुम्हें भइया भइया कह बुलाने लगूँ

    इसके बजाए तुम जब भी रहो मेरे आस-पास

    ऐसे रहो

    जैसे रहते हैं कोई भी दो पेड़

    एक दूसरे से अपनी हवा बाँटते

    मेरे काम की तुम तारीफ़ करो तो चलेगा

    पर उसे वैसे ही जाँचो-परखो

    जैसे किसी पुरुष कर्मचारी का जाँचते-परखते हो

    तुम ये कहो

    गणित पढ़ाना मैडम के वश की बात नहीं

    या क्या तुम जा पाओगी इस शहर से उस शहर अकेली

    कर पाओगी देर रात तक मीटिंग

    रह पाओगी होटल में अकेले

    अकेले ड्राइव करने में कोई ऊँच-नीच हो गयी तो?

    इसके बजाय जब मैं कर रही हूँ अपना काम

    तुम ध्यान रखो कि कहीं मेरा काम तुम्हारी वजह से रुक तो नहीं रहा

    तुम्हारी वजह से मैं कम तो नहीं हो रही

    तुम ये सोचो हज़ारों सालों से जिनको

    बहुत से मौक़ों से जगहों से भूमिकाओं से

    जबरन और सोच-समझकर हटाया गया

    उनको उनकी सही जगह लेने में क्या मदद कर सकते हो?

    बहुत लंबी नहीं है मेरी लिस्ट

    बस इतनी-सी बात है

    तुम और मैं

    समान अधिकार से खा-पी सकें

    कहीं आ-जा सकें

    ओढ़-पहन सकें पढ़-लिख सकें काम कर सकें

    और ये सब इतना सहज हो कि

    मेरा स्त्री और तुम्हारा पुरुष होना

    हमारे जीने के बीच कोई बाधा बने।

    स्रोत :
    • रचनाकार : रेखा चमोली
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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