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एक सजेशन

ek sajeshan

अनुवाद : महावीरसिंह चौहाण

सितांशु यश्चंद्र

और अधिकसितांशु यश्चंद्र

    (रू-ब-रू कचहरी में)

    ना, हुजूर,

    कोई नया लफड़ा लेकर नहीं आया, साहब जी, वही पुरानी पेशी है,

    गोदाम वाली।

    तीन मास पहले, आप जहाँ पधारे थे, उसी मुहल्ले की, हाँ बड़े सा’ब।

    वही, पाँच पट्टी वाला गोदाम

    उसके बारे में सिर्फ़ इतना कहना है, हुकुम, कि

    वह आज भी जहाँ की तहाँ मौजूद है।

    मेहरबान सा'ब, बहुत बड़ा त्रास हो गया है, सबके लिए

    अब तो सहा ही नहीं जाता इसीलिए आए हैं।

    सिर्फ़ हम पाँच को आने की इजाज़त मिली है, आपकी हाज़िरी में।

    दूसरे भी बहुत सारे अरज करने आए हैं

    बाहर दालान में खड़े हैं, सांती से।

    थोडे में ही, थोड़े ही में, मेहरबान सर जी, थोडे में अरज यह कि

    यह बस्ती वाला इलाका है, अक्सर महामारी फैलती है,

    पिछले महीने ही चार मौतें हो गईं,

    मे’रबान! अब तो मे’रबानी करो!

    कौन जाने क्या-क्या लाकर रखते हैं गोदाम में!

    कोई भी बूढ़ा नहीं था, सर, मरने वालों में

    एक भी बूढ़ा नहीं था

    दो तो अल्हड़ जवान ही थे, मैयत में,

    और दो बच्चे थे, इस बूढ़े का तो

    एक का एक बेटा चला गया, यही कोई बीस-इक्कीस का रहा होगा।

    किससे कहें

    अख़बार वालों से?

    सरकार, आपको धमकी देंगे? हम क्या देंगे?

    अख़बार वाले हमारे पीछे पड़ते हैं,

    फिर भी हम अपना मुँह नहीं खोलते, आप तो मालिक हैं।

    सिर्फ़ यह एक आपके सामने बोलने की जगह बची है,

    उसे बची रहने दो मेरे माई-बाप!

    तो साहब, इस गोदाम की कुछ चीजों को 'डिछपोज' नहीं कर सकते?

    बीयेसेफ में सुना है सा'ब, 'डिछपोज' और 'डिछपोजल'।

    उस पार से तस्करी में जो आता है, बोरडर में, उस माल के लिए।

    ना-ना... बड़े सा'ब, गोदाम में सीमा पार का कहाँ से आया?

    मेरा मतलब ऐसा नहीं था।

    उसमें तो सब यहाँ का लगता है।

    लेकिन सरकार, बोरे के बोरे आज तक कितने टैम से वहाँ के वहाँ हैं।

    बदबू मारते हैं, बड़े साब!

    कीड़े ही कीड़े हो गए हैं, माई-बाप!

    गोदाम से निकल-निकलकर

    हमारे घरों में घुस आते हैं, चमड़ी चूस लेते हैं, सर जी!

    गोदाम में क्या-क्या है, बिना देखे

    कैसे कह सकते हैं, बड़े सा’ब!

    हम तो सिर्फ़ इतना जानते हैं कि

    हमारे बाल-बच्चे देखते-ही-देखते ढेर हो जाते हैं।

    अब सहन नहीं होता है, माई-बाप।

    सड़े को बचाएँ और ज़िंदा को मार डालें

    आपका यह कैसी गोदाम है, बड़े सरकार!

    स्रोत :
    • पुस्तक : जटायु, रुगोवा और अन्य कविताएँ
    • रचनाकार : सितांशु यशचंद्र
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन

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