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एक क़स्बे के स्कूल मास्टर की डायरी का एक पन्ना

ek qasbe ke school master ki Diary ka ek panna

आलोक श्रीवास्तव

आलोक श्रीवास्तव

एक क़स्बे के स्कूल मास्टर की डायरी का एक पन्ना

आलोक श्रीवास्तव

और अधिकआलोक श्रीवास्तव

    मैंने गढ़े थे साँचे वे

    टूटती दीवारों वाली इस

    पाठशाला के अपने अकेलेपन में

    मैंने सपने बाँटे थे

    बाँटता है जैसे सांताक्लाज

    खिलौने!

    कहा था मैंने उनसे

    ऊँचे मानवीय आदर्शों की बाबत

    सुनाई थी कितनी कहानियाँ

    महापुरुषों के प्रेरक-प्रसंग कितने!

    एक लालटेन के सौरमंडल में

    नामालूम उपग्रह-सी

    वृत्ताकार काटती रही चक्कर

    मेरी दिनचर्या!

    जीवन भर घिसे बोर्ड पर लिखता रहा मैं

    दुनिया की महान सूक्तियाँ

    इतिहास के पन्नों में

    निर्धारित करता रहा मैं भूमिकाएँ

    कहता रहा उनसे

    तुममें से ही कोई लिंकन, कोई गांधी...

    वो तो बहुत दिन बाद जाना मैंने

    ताउम्र

    शहर की मशीनों के लिए

    दास बनाता रहा मैं

    जीवन भर घिसे बोर्ड पर

    लिखता रहा मैं

    दुनिया की महान सूक्तियाँ!

    स्रोत :
    • पुस्तक : यह धरती हमारा ही स्वप्न है (पृष्ठ 39)
    • रचनाकार : आलोक श्रीवास्तव
    • प्रकाशन : संवाद प्रकाशन
    • संस्करण : 2006

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