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एक पत्र

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कुमार विकल

कुमार विकल

एक पत्र

कुमार विकल

और अधिककुमार विकल

    निरुपमा दत्त मैं बहुत उदास हूँ 
    तुम यह शहर छोड़ चुकी हो 
    फिर भी मैं तुम्हारे आस-पास हूँ 
    तुम्हारी हर दुःख-घड़ी में 
    तुम्हारे सीमित सुखों की हर कड़ी में।

    इस पत्र में
    मैं तुम्हारे दुःख नहीं दुहराऊँगा 
    केवल उन सुखों के बारे में जानना चाहूँगा 
    जो तुम 
    अब तक 
    दिल्ली-जैसे क्रूर शहर में पा सकी हो।
    और मैं अपने दुःखों की तफ़सील भी नहीं बताऊँगा 
    जो मैंने 
    तुम्हारी ग़ैरहाज़िरी में कमाए हैं
    और अभी तक किसी को नहीं सुनाए हैं 
    नीरू, मैं नहीं जानता 
    तुम्हें यह नया शहर कैसा लगता है 
    लेकिन मैं इतना ज़रूर जानता हूँ 
    तुम अपने सारे दुःख 
    एक पोटली में बंदकर 
    जान-पहचान के लोगों की महफ़िलों में 
    जाती हो
    हँसती-चहचहाती हो 
    बहुत से लतीफ़े और मेरी कविताएँ सुनाती हो 
    और रात गए

    जब
    अपनी बरसाती में लौटकर आती हो 
    अपने दुःखों की पोटली खोलकर बहुत रोती हो 
    और रात-रात भर बिलकुल नहीं सोती हो 
    उस वक़्त 
    कुछ सस्ती क़िस्म की सिगरेटें ही तुम्हारा सहारा होती हैं 
    या चंडीगढ़ की कुछ सुखद यादें 
    एक माँ 
    एक भाई 
    जो 'ट्वंटी सैवन डाउन'1 में यात्रा
    करने के फ़ैसले कई बार कर चुका है 
    यदि तुम चाहती हो 
    तुम्हारा भाई इस गाड़ी में कभी नहीं बैठे 
    तुम चंडीगढ़ लौट आओ 
    ताकि हम तीनों 
    बहुत से हमकलम लोगों से मिलकर 
    दुःखों को कम करने के लिए लड़ सकें। 
    स्रोत :
    • पुस्तक : संपूर्ण कविताएँ (पृष्ठ 239)
    • रचनाकार : कुमार विकल
    • प्रकाशन : आधार प्रकाशन
    • संस्करण : 2013

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