एक
एक मामूली भारतीय शहर
चिलचिलाती गर्मी से लड़ता हुआ
पसीना-पसीना हो रहा है
सड़क पर लगे जाम में
एक ऑटो के भीतर से देखने पर
एक कार का वातानुकूलित अहाता
स्वर्ग समान दिखता है
गर्म हवा जिसके मुँह पर दुनिया भर ने
किवाड़ भेड़ दिए
हर एक हताश-परेशाँ राहगीर के कानों में
कोई उदास गीत गुनगुनाती है
वृक्षों को झकझोर कर कहती है
कि मुझे पहचानो, मैं वही हूँ
जिसके ठंडे स्पर्श की स्मृति में
तुम आँखें बंद किए रमे हो
दो
ख़ुद को धूप से बचाते ये पेड़
जो सड़कों के दोनों तरफ़
अपने ऊपर एक हरे रंग का छाता ताने खड़े हैं
इन्हें बारिश में मालूम पड़ेगा
कि इनके छातों में कितने छेद हो चुके हैं
तीन
इस दौड़-धूप के बीच ही
ऑटो में बैठे हुए
बंद आँखों से एक परदे पर देख पाता हूँ
सुदूर सागर तट पर उमड़ती लहरें
महसूस होता है
एक ठंडी हवा का शीतल आलिंगन
एक मायावी स्वप्न
जो टूट जाता है
जैसे ही एक भयानक उमस
ऑटो-चालकों का सब्र तोड़ती है
उनकी निराशा
गालियाँ बनकर बाहर आती है
वे गालियाँ देते हैं
जो सालों पहले इस शहर में
अर्थहीन घोषित की जा चुकी हैं
वे खोए हुए अर्थों के पैरवीदार हैं
चार
एक बूढ़ी गाय
अन्यमनस्क सड़क के बीचो-बीच खड़ी है
दिन-ब-दिन बदलते इस शहर की
तत्त्व-मीमांसा में उलझी हुई
पाँच
विचारों के अप्रत्याशित प्रवाह के बीच
ऑटोवाला पनवाड़ी की दुकान के सामने ब्रेक लगाता है
वे एक दूसरे को देखकर मुस्कुराते हैं
और हाथ सिर तक उठाते हुए
सलाम करते हैं
एक गुटखे की पुड़िया अबोले ही
ख़रीदी-बेची जाती है
शब्दों को इस किफ़ायत से बरतते हुए
वे दो लोग कोई कवि लगते हैं
- रचनाकार : शिवम तोमर
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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