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एक कविता दो फूल

ek kavita do phool

अपूर्वा श्रीवास्तव

अपूर्वा श्रीवास्तव

एक कविता दो फूल

अपूर्वा श्रीवास्तव

और अधिकअपूर्वा श्रीवास्तव

    देखना एक नज़र और

    देखते रहना सतत

    देखने की बारीकी है

    एक नज़र देखने मात्र से हम देख सकते हैं वह

    जिसे देखने के लिए ही मानो मिला हो यह जीवन

    और सतत देखते रहने की प्रक्रिया में भी

    छूट सकता है वह एक दृश्य जिस के लिए जिए जाता है आदमी

    तुम्हें देखते हुए मैंने देखा

    मेरे भीतर—

    उतर रहा जीवन

    नन्हें कोंपल की तरह

    गाछ होता हुआ

    आठों पहर जिससे

    आने लगा सुवास

    मुझे समझाया गया बार-बार कि

    नहीं टोका जाता है

    रात में आने वाली किसी सुगंध को

    और नहीं दिखाया जाता है

    एक आँख

    नहीं लाँघा जाता है कोई कपड़ा

    गिरा हुआ, सड़क पर

    ना हीं पुकारा जाता है जाते हुए को

    पीछे से

    और हाँ दूध और तेल से

    हो जाता है जतरा

    ख़राब

    लेकिन बताया नहीं गया कि

    रह जाता है जीवन अपूर्ण

    और नीरस भी

    बग़ैर प्रेम

    इसलिए

    जब-जब मिले तुम और

    बढ़ाए हाथ

    बजाए की थामने के हाथ

    धरती रही मैं

    तुम्हारी हथेली पर

    एक कविता दो फूल।

    स्रोत :
    • रचनाकार : अपूर्वा श्रीवास्तव
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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