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एक ईमानदार दुनिया के लिए

ek imanadar duniya ke liye

नंद चतुर्वेदी

नंद चतुर्वेदी

एक ईमानदार दुनिया के लिए

नंद चतुर्वेदी

और अधिकनंद चतुर्वेदी

    तुम्हें तो कुछ भी याद नहीं होगा

    किसी का नाम-गाम

    संघर्ष, अपमान, लात-घूँसे

    यातना के दिन

    सपने, स्वाधीनता और जय-जयकार

    कुछ भी तो याद नहीं होगा तुम्हें

    सिर्फ़ बड़े हो गए हो

    रोशनी में चलते हुए

    पूरे मुँह पर अँधेरे की उदासी लेकर

    हर क़दम पर

    संशय, कड़वाहट और बीमार दिनों को गिनते

    देखता हूँ तुम्हारे कपड़े फट गए हैं

    देखता हूँ पिता का पुराना मफ़लर

    जगह-जगह रफ़ू किया है

    गले में डाल कर तुम बड़े हो गए हो

    धक्के खाते हुए

    शाम होते ही तुम्हें घर पहुँचना है

    तुम्हें याद नहीं होगा

    बाज़ार रोशनी से लक-दक है

    सिर्फ़ तुम्हीं हो

    छुट्टी के दिन का मातम मनाते हुए

    बड़े होते हुए

    पच्चीस वर्ष पहले की तुम्हें याद नहीं होगी

    जूते नीचे से फट गए हैं

    इसकी भी याद नहीं होगी तुम्हें

    इन इमारतों पर

    इतना चटकदार रंग हो गया है इन दिनों

    तुम्हारी उम्र के लड़के

    दफ़्तर की सीढ़ियों पर

    एक बेरहम आदमी की प्रतीक्षा में बैठे हैं

    शाम के मटमैले सूरज की रोशनी में

    उम्र बीतती है

    दुःख के आर-पार

    लंबी दौड़ और एक उत्साह रहित

    मैदान की तरफ़ देखते हुए

    एक फ़ैसला अपने मन में करो

    वर्षा में चलो

    या कि जेठ-बैसाख में

    वर्ष स्मृतिहीन, शब्दहीन

    गुज़रें या कि पल

    चलो और फ़ैसला करो

    इस तरह कुछ भी बीते

    बीते यह अनुर्वरा दिन, उम्र

    इसका फ़ैसला करो

    तुम्हें याद नहीं होगा

    इतिहास के मलबे पर

    उन बेशुमार, आततायी, बर्बर लोगों के चेहरे

    क्लीव बुद्धिजीवी, निठ्ठले पंडित

    लालची कठमुल्ले, मौलवी

    हारी हुई बाज़ी के प्यादे

    फ़ैसला करो

    इस नर्क के दरवाज़े पर...

    स्रोत :
    • रचनाकार : नंद चतुर्वेदी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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