एक घरेलू दृश्य
ek gharelu drishya
घर आकर मैंने पहला काम
क़मीज़ उतारने का किया
सारा दिन उसने मेरे धड़ की भद्दी नक़ल की थी-
यह ख़याल आते ही मैंने उसे भन्ना कर फेंका
वह एक कोने में सिकुड़ी उकड़ूँ पड़ी रही
उसकी सलवटी में
मेरी नाक,
मेरा कपाल,
मेरी आँखों के नीचे के गड्ढे,
मेरे बिचके हुए ओंठ
और मेरे बाल भी
थोडे-बहुत दिखाई दिए।
मैंने घबराकर गर्दन पर हाथ रखा
गर्दन ढूँढ़ लूँ उससे पहले ही
मेरे हाथ आँखों की तरह खुलकर
टकटकी लगाकर देखने लगे
अँगुलियाँ ओंठो की तरह बिचक
सिसकारी भर उठीं।
- पुस्तक : शब्द सेतु (दस भारतीय कवि) (पृष्ठ 18)
- संपादक : गिरधर राठी
- रचनाकार : कवि के साथ अनुवादक वर्षा दास और विष्णु नागर
- प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
- संस्करण : 1994
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