एक आदमी दो पहाड़ों को कुहनियों से ठेलता
ek adami do pahaDon ko kuhaniyon se thelta
शमशेर बहादुर सिंह
Shamsher Bahadur Singh
एक आदमी दो पहाड़ों को कुहनियों से ठेलता
ek adami do pahaDon ko kuhaniyon se thelta
Shamsher Bahadur Singh
शमशेर बहादुर सिंह
और अधिकशमशेर बहादुर सिंह
एक आदमी दो पहाड़ों को कुहनियों से ठेलता
पूरब से पच्छिम को एक क़दम से नापता
बढ़ रहा है
कितनी ऊँची घासें चाँद-तारों को छूने-छूने को हैं
जिनसे घुटनों को निकालता वह बढ़ रहा है
अपनी शाम को सुबह से मिलाता हुआ
फिर क्यों
दो बादलों के तार
उसे महज़ उलझा रहे हैं?
- पुस्तक : टूटी हुई, बिखरी हुई (पृष्ठ 164)
- संपादक : अशोक वाजपेयी
- रचनाकार : शमशेर बहादुर सिंह
- प्रकाशन : राधाकृष्ण प्रकाशन
- संस्करण : 2004
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