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एक आलसी टीचर के नोट्स

ek aalsi teacher ke nots

घनश्याम कुमार देवांश

घनश्याम कुमार देवांश

एक आलसी टीचर के नोट्स

घनश्याम कुमार देवांश

और अधिकघनश्याम कुमार देवांश

     

    एक

    चूँकि टीचर आलसी था 
    इसलिए वह ऊपर के पायदान वालों से मन ही मन डरता 
    और इस डर को मुस्कान से ढँकने की कोशिश करता 
    उसकी मुस्कान को उसकी विनम्रता मानते हुए 
    उसे कई-कई बार क्षमा कर दिया जाता 

    बच्चे उसके आलस के क़ायल थे कि 
    अक्सर वह उनकी परीक्षाएँ समय से लेना भूल जाता 
    और भूल जाता कि उन्हें होमवर्क देना है
    या बनानी है एक अदद वर्कशीट जिसमें वे अपना संडे ख़र्च करेंगे 
    उसे अक्सर यह ध्यान नहीं रहता कि 
    बच्चों के बाल स्कूल आने लायक़ हैं या नहीं 
    जूतों के रंग और वर्दियों के निर्धारित दिन भी वह अक्सर भूल जाता 

    लेकिन बच्चे उसे मन ही मन प्यार करते 
    कि कम से कम एक अदद आलसी और भुलक्कड़ टीचर तो उनके हिस्से में है 
    जिसे वे बच्चे होकर भी बहला-फुसला सकते हैं 
    ज़िद मचा कर जिसे 
    मजबूर कर सकते हैं एक मज़ेदार क़िस्सा सुनाने के लिए 

    आलसी टीचर काम-धाम छोड़कर बच्चों के बीच बैठ जाता 
    एक अनाड़ी क़िस्सा-गो की तरह 
    अँगीठी पर मद्धम 
    अँगीठी पर मद्धम-मद्धम पकते क़िस्से
    पॉपकॉर्न की तरह पट-पट-पट फूटते चुटकुले
    ख़ामोशी से सुलगते सस्पेंस 
    आँखों में फैलता विस्मय 
    होंठों में फैलती उजास भरी मुस्कान 
    एक घंटी जादू रचती 
    दूसरी उसे तोड़ देती। 

    दो

    टीचर इतना आलसी था 
    कि उसे अपने वक़्त और काम का कुछ भी होश नहीं रहता 
    वह कभी बादल के एक टुकड़े के पास ठिठका मिलता 
    तो कभी घास पर बैठी चिड़िया की ओर झुक जाता 
    विज्ञान के सिद्धांत उसे झूठे लगते 
    और हर ख़ामोश चीज़ जीवित व साँस लेती हुई 
    वह इस बात में अपना पुख़्ता यक़ीन दिखाता 
    कि यदि ठीक से अकेले बैठना सीख सको तो 
    एक बेंच से भी की जा सकती हैं दिल खोलकर बातें 
    उसे बराबर लगता 
    कि बेशक इस दुनिया में ज्ञान का अथाह और अपार भंडार भरा है 
    लेकिन उसे हासिल करने की ज़िम्मेदारी 
    अकेले बचपन पर नहीं होनी चाहिए 

    वह शाम को चाय पीते समय आईने के सामने 
    कटघरे में खड़ा हो जाता और कहता : 
    बच्चों को पेड़ पर चढ़कर परिंदों के घोंसलों में झाँकना सिखाओ 
    सिखाओ हुनर समंदर की गीली रेत पर नंगे पाँव टहलने का 
    बालकनी से डूबते सूरज को घंटे भर निहारना बताओ 
    इस तपते महानगर में पक्षियों के लिए रोज़ छत पर मुट्ठी भर दाने और 
    पानी छोड़ना तो उनके लिए सबसे ज़रूरी होमवर्क होना चाहिए 
    और सबसे ज़रूरी बात तो यह 
    कि उन्हें किसी बदसूरत अजनबी को देखकर 
    बेख़ौफ़ और निश्चल भाव से मुस्कुराना तो आना ही आना चाहिए।

    तीन

    रोज़ सुबह जब शहर की सबसे बड़ी लैंडफ़िल साइट के पीछे से 
    आँखें मलता हुआ सूरज 
    तड़के उठने की तैयारी में होता  
    तब लैपटॉप के की-बोर्ड से थकी हुई उसकी उँगलियाँ
    बिस्तर से उठने के वास्ते दीवार पर घड़ी की सूइयाँ टटोलतीं 
    फ़्लैट वाया अपार्टमेंट, लिफ़्ट, लॉबी, कार, सड़क, अंडरग्राउंड पार्किंग 
    और फिर बिल्डिंग

    वह सूरज, पेड़-पौधों, पत्तियों, ओस, कुहरे 
    और बादलों भरे आसमान से बिना दुआ-सलाम 
    स्कूल जा पहुँचता 
    और इस तरह एक बड़ी-सी आलीशान इमारत 
    एक अदने से मामूली (आलसी) शिक्षक को दिन भर के लिए निगल लेती।

    चार

    मेरे बच्चो! माफ़ करना 
    लेकिन अभी मानवीय सभ्यताएँ इस नतीजे पर नहीं पहुँच पाईं 
    कि मनुष्य होने की तालीम का बुनियादी पाठ्यक्रम कैसे रचा जाए 
    जबकि एक पक्षी, एक हिरण 
    और एक उल्लू की तालीम का तरीक़ा पूरी धरती पर एक ही है

    शायद इसी ग़फ़लत में वह मनुष्य होने की जगह 
    सिखा देता है तुम्हें मज़हब होना
    जाति और रंग होना 
    वह सिखा देता है तुम्हें मालिक या सर्वहारा होना 
    कभी-कभी शिकारी तो कभी शिकार तक हो जाना 

    जीभ को मुँह के भीतर समेटकर 
    चुप्पी साधना 
    या फिर रेत में आँखें धँसाकर शतुरमुर्ग़ तक होना 
    और तो और 
    वह तुम्हें कुर्सी तक होना सिखा देता है 
    और यह भी कि जब कुर्सी से काम न चले 
    तो दूसरों के वास्ते दरी तक हो जाना 

    मैंने यहाँ तक देखा है कि तुम्हें कोड़ा तक होना सिखाया जाता है 
    और यह भी कि ज़रूरत पड़ने पर उन्हीं कोड़ों के लिए 
    नर्म-मुलायम पीठ कैसे बना जा सकता है 
    वही सिखाता है पहले-पहल तुम्हें मर्द होना 
    और फिर यह भी कि उस मर्द के लिए औरत कैसे होना होगा 
    दरअसल, यह सिर्फ़ मनुष्य ही था जिसने तुमसे काम लिया 
    एक गेंद की तरह 

    मेरे बच्चो! माफ़ करना 
    हालाँकि मैं शर्मिंदा हूँ 
    लेकिन फ़िलहाल मैं तुम्हारे लिए कुछ नहीं कर सकता 
    सिवाय एक प्रार्थना के 
    कि एक दिन स्कूलों और मदरसों से मुक्त होगी धरती।

     
    स्रोत :
    • रचनाकार : घनश्याम कुमार देवांश
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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