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धूल के लिए लोरी

dhool ke liye lori

अनाम कवि

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धूल के लिए लोरी

अनाम कवि

और अधिकअनाम कवि

    जब सत्ता ने तय कर दिए

    महानता के मानदंड

    और अनेक संदिग्ध बना दिए गए महान

    तब उनके पराक्रम से रौंदी गई धरती से तुमने जन्म लिया

    तिरस्कार और प्रतिशोध की आग में जलती तुम

    उड़ने लगीं लोगों की आँखों और चेहरों पर

    उन्हें ज़िंदा दफ़न करती हुई

    होकर सवार हवा के कंधों पर

    तुम उड़ चलीं शिखरों तक

    मूर्तियों और चित्रों को धुँधलाकर

    तुम चली आईं

    पत्तियों के आश्रय में

    खेलने लगीं किलकते अधनंगे बच्चों के साथ

    खुरों और पहियों से कटते धरती के घाव

    भरती रहीं उन पर बैठ-बैठकर

    बुहारे जाना पर आँगन में बार-बार घुसकर

    खाने लगीं गाली, एक बुढ़िया से

    जाने किन संधों से घुसकर

    ढँकती रहीं किताबों को

    बारिश में बनकर कीचड़

    लिपटती रहीं पैरों से

    उड़ती रहीं दुनिया में उद्विग्न और प्रतिशोध से भरी

    पेड़ तुम्हारे बेचैन भटकाव के रास्ते में खड़े हैं

    विनम्र और आत्मीय ज़िद के साथ

    वे तुम्हारे पड़ाव बन जाना चाहते हैं

    अपनी पत्तियों पर देना चाहते हैं आतिथ्य

    अपने फूलों और फलों पर देना चाहते हैं आश्रय

    आज हवा है शांत, और घोंसलों में गहरी है नींद

    सो जाओ डालियों और पत्तियों की आड़ में

    अप्रवासी परिंदों की तरह

    सो जाओ कि अब सो चुके हैं

    जूते, पहिए और पशु

    सो जाओ कि हमेशा तुमसे जागता रहेगा

    अशांत विद्रोही का चेहरा

    सो जाओ कि रोज़-रोज़ तुम

    मुकुट, सिंहासनों को करती रहोगी, धुँधला और मटमैला

    सो जाओ कि एक नई सृष्टि के संकल्प से भरीं तुम

    उड़ती ही रहोगी बेचैन।

    स्रोत :
    • पुस्तक : एक अनाम कवि की कविताएँ (पृष्ठ 128)
    • संपादक : दूधनाथ सिंह
    • रचनाकार : अनाम कवि
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2016

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