जब वे अपने बच्चे के लिए
खिलौने ख़रीद रहे होते हैं
उन्हें एक बच्चा
उम्मीद से देखता है
वह भी बच्चा है
वे फ़ुरसत में
उस पर बहस करते हैं
कोई शब्द
उस बच्चे के ख़ाली पेट
और रीती आँखों को नहीं देखता
वे हँसते हैं
अपने बच्चे को हँसता देखकर
इतने ज़ोर से कि
दुनिया के दूसरे बच्चे
अपनी भूखी नींद से उठकर
रोने लगते हैं
अपने बच्चे को वे
हँसने का सलीक़ा सिखाते हैं कि
अगर वह हँसे उनकी तरह
तो उसे मिलेंगे
और भी अच्छे खिलौने
न जाने कहाँ से सुनकर
उनकी आवाज़
कुछ बच्चे अपनी फटी क़मीज़ों के नीचे
छुपा लेते हैं रात की रोटी
- पुस्तक : चाँद पर नाव (पृष्ठ 17)
- रचनाकार : हेमंत कुकरेती
- प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ
- संस्करण : 2003
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