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दूसरा दिन

dusra din

सत्यम तिवारी

सत्यम तिवारी

दूसरा दिन

सत्यम तिवारी

और अधिकसत्यम तिवारी

    ज़िंदगी कभी भी करा सकती है अपराध

    फाँसी कभी भी बदल सकती है उम्रक़ैद में

    सज़ा काटने से कम नहीं होती

    जेलर अच्छे व्यवहार से भी नाख़ुश होता है

    एक दिन जेल में बिता ले आदमी

    तो दूसरा दिन भी बीत जाएगा आसानी से

    इसकी कोई गारंटी नहीं

    अप्राप्य पीठ पर बेताल की तरह लटकता है

    एक ग़लत जवाब से भी माथा फटता है

    चाहत के आकाश में कोई

    पुराना सितारा चमकता है

    और नयापन है कि अखरता है

    सिर्फ़ अखरता है

    स्रोत :
    • रचनाकार : सत्यम तिवारी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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