दुनिया की रफ़्तार से बाहर खड़े लोगों के लिए
duniya ki raftar se bahar khaDe logon ke liye
बसंत त्रिपाठी
Basant Tripathi
दुनिया की रफ़्तार से बाहर खड़े लोगों के लिए
duniya ki raftar se bahar khaDe logon ke liye
Basant Tripathi
बसंत त्रिपाठी
और अधिकबसंत त्रिपाठी
एक
हम सब एक क़तार में खड़े थे
मैं धकिया कर लाया गया था
और मेरे चेहरे पर दौड़ के पहले की व्यग्रता का मुखौटा था
मेरी रुलाई उसके पीछे छुपी थी
जिसे सिर्फ़ मैं ही जानता था
आख़िरकार धाँय की आवाज़ हुई
तीर की तरह छूटे सब अपनी जगहों से
मैं हक्का-बक्का खड़ा रहा
अपनी ही जगह
सबको अपने से दूर जाते देखता हुआ
दूसरी धाँय का निशाना
मेरा एक घुटना था
मैं हँसते हुए मुखौटे के साथ
दौड़ के बाहर लाया गया।
दो
दुनिया की रफ़्तार के अपने नियम थे
जो यक-ब-यक स्वनिर्मित लगते थे
मैं सुबह उठा सूरज के चढ़ आने के बाद
मैं थोड़ी देर और लेटे रहना चाहता था
लेकिन समय नहीं था इसके लिए
और अब मैं भी
शहर की दौड़ में शामिल था
मेरी स्मृति में लेकिन आज
रह-रहकर एक चिड़िया की कौंध उठती थी
जिसे कल पहली बार मैंने
अपनी खिड़की की रेलिंग में देखा था
मैं बारिश का इंतज़ार करते हुए
दौड़ में शामिल था
इस तरह दौड़ से अलग भी था।
तीन
सूखे दौड़ते पत्ते
गिरे-बिखरे फूल
उपयोगिता के बाहर पॉलीथिन के पैकेट
और उन्हें बीनता हुआ एक
गर्मियों की रातें
रुकी हुई रुलाई
प्यास से बिद्ध टूटे अधूरे सपने
और उन्हें याद करता हुआ एक
आवारा कुत्ते
मस्त पंछी
मृत्यु का इंतज़ार करते बूढ़े
विकास की परिभाषा से बाहर खदेड़े दिए गए लोग
और ख़ुद मैं
अचानक समय ने कहा—
निकलो यहाँ से, चुपचाप
इस सदी में जीने लायक़ नहीं हो तुम
फिर में टाइम मशीन में डाल कर
भेज दिया गया
गुज़री शताब्दी के पराजित कोनों में
अच्छा हुआ!
हम वहीं से लौटेंगे
जो ग़लत हुआ उसे ठीक करते हुए।
- रचनाकार : बसंत त्रिपाठी
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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